बिहार में मंत्रिमंडल का विस्तार होना है। इससे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने फिलहाल अपना पल्ला झाड़ लिया है। उन्होंने कह दिया है कि इस पर फैसला तेजस्वी यादव को करना है और उनकी घोषणा के बाद से ही कांग्रेस और आरजेडी के तेवर तीखे हो गए हैं। तेजस्वी ने कह दिया है कि पहले कांग्रेस मंत्रियों की सूची लाए, फिर बात की जाएगी। इस पर बिहार कांग्रेस के मुखिया अखिलेश प्रसाद सिंह ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा है कि नीतीश कैबिनेट का विस्तार होना है, ना कि तेजस्वी कैबिनेट का। यानी, कांग्रेस अभी भी तेजस्वी को वह सम्मान नहीं देना चाह रही है, जिसके वो आकांक्षी हैं। फिलहाल, कांग्रेस के दो मंत्री हैं-
- अगस्त 2022 में नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू ने बीजेपी से गठबंधन तोड़ा
- महागठबंधन की सात पार्टियों के साथ मिलकर नीतीश कुमार ने सरकार बनाई, इसमें कांग्रेस-आरजेडी-वामपंथी इत्यादि सभी शामिल थे
- सरकार में नीतीश-तेजस्वी समेत 31 मंत्री बनाए गए जिनमें राजद से 17, जेडीयू से 12, कांग्रेस से 2 और हम-निर्दलीय कोटे से एक-एक मंत्री हैं
- कांग्रेस ने विद्रोह का बिगुल फूंका, पार्टी का तर्क है कि 80 सीटों वाली राजद को 17 पद और 19 सीटें वाली कांग्रेस को सिर्फ 2 पद दिए गए हैं.
- जनवरी 2023 में जब विस्तार की सुगबुगाहट तेज हुई तो कांग्रेस ने 2 पद की मांग कर दी, जिसके नीतीश कुमार ने गेंद तेजस्वी के पाले में डाल दी
कांग्रेस की मलाई खाने की आस पर तेजस्वी-ग्रहण
243 सदस्यों वाली बिहार विधानसभा में महागठबंधन के पास अभी 145 विधायकों का समर्थन है। कांग्रेस फिलहाल आरजेडी को नियम याद दिला रही है। कांग्रेस का तर्क है कि बिहार में नियमानुसार 36 मंत्री बनाए जा सकते हैं। ऐसे में 5 विधायक पर एक मंत्री पद का फॉर्मूला आसानी से लागू किया जाना चाहिए, जिससे आनुपातिक हिस्सेदारी पूरी हो सकेगी।
- हिसाब लगाएं तो राजद को 16, जदयू को 9 और कांग्रेस को 5 मंत्री पद मिलेंगे। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि महागठबंधन में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद उसके पास कोई महत्वपूर्ण और बड़ा विभाग नहीं है। कांग्रेस आरजेडी को झारखंड का भी उदाहरण देती है, जहां आरजेडी के एक विधायक मात्र होने के वावजूद उनको ही सरकार में मंत्री बना दिया गया।
आरजेडी अपनी जमीन कांग्रेस को नहीं देगी
दिल्ली में लालू प्रसाद यादव से मुलाकात के पीछे तेजस्वी का एक एजेंडा इस मुद्दे को सुलझाना भी है। हालांकि, पटना लौटे तेजस्वी यादव ने कहा कि कैबिनेट विस्तार में कांग्रेस को एक सीट देने की बात हुई थी। इससे यह तो तय है कि एक सीमा के बाद कांग्रेसी ब्लैकमेल को वह नहीं झेलेंगे। तेजस्वी ने कहा कि कहा कि सरकार में 4 पार्टियां शामिल है, बाकी तीन पार्टियां अपनी मर्जी से सरकार में शामिल नहीं हुई हैं और वह बाहर से समर्थन दे रहे हैं। बयानबाजी के ताजा राउंड के बाद यह तो तय है कि आरजेडी कांग्रेस को एक ही पद देगी। फिर, बिना विवाद के क्या कांग्रेस-आरजेडी में फैसला संभव है?
लालू का लक्ष्य, कांग्रेस रहे दोयम
जब 1990 के आखिरी दशक में लालू से सहयोग कर कांग्रेस ने बिहार में चुनाव लड़ना शुरू किया, तो उसी समय से लालू की यह साफ पॉलिसी रही कि उनको कांग्रेस को सहयोगी दल और दोयम दर्जे की पार्टी बनाकर ही रखना है। लालू ने कांग्रेस की सीटें बंटवारे में घटाकर सिंगल डिजिट तक कर दीं। फिलहाल, बिहार से जो एक लोकसभा सदस्य महागठबंधन की तरफ से हैं, वह कांग्रेस उम्मीदवार ही है। कांग्रेस के अपने नेताओं ने भी आरजेडी की आलोचना की है। जैसे, बड़े नेता अशोक चौधरी ने कांग्रेस छोड़ा तो कहा कि लालू यादव और उनके परिजन अपने सहयोगी दलों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार करते हैं और वह कभी भी कांग्रेस के प्रति ईमानदार नहीं रहे हैं।
वहीं लालू ने पिछले साल एक इंटरव्यू में कांग्रेस को स्पेंट फोर्स बता दिया। उन्होंने यह भी कह दिया कि पिछले चुनाव की हार महागठबंधन की नहीं, कांग्रेस की है।
कांग्रेस की जगी है उम्मीदें
सीताराम केसरी जब कांग्रेस अध्यक्ष थे, तब से आरजेडी ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया और आज दोनों दल मिलकर 7 चुनाव लड़ चुके हैं। 1998 के इस चुनाव में कांग्रेस को 4 सीटों पर आरजेडी को 17 सीटों पर जीत मिली थी। भारतीय जनता पार्टी की अगुआई वाले एनडीए गठबंधन ने 29 सीटों पर जीत दर्ज की थी।
- लोकसभा चुनाव में लगातार कांग्रेस का ग्राफ गिरा है, 1999 में कांग्रेस को दो, 2004 में 3, 2014 में दो और 2019 में एक लोकसभा सीट पर जीत मिली
- आरजेडी बंटवारे के दौरान कांग्रेस की सीटों में कटौती कर दे रही है, 2014 में कांग्रेस बिहार में 12 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, जबकि 2019 में यह संख्या घटकर 9 पर पहुंच गई
2024 चुनाव ही है असल मुद्दा
कांग्रेस अगर अधिक सीटों पर बिहार में चुनाव लड़ने में कामयाब रहती है, तो चुनाव बाद तीसरे मोर्चे की संभावनाएं खत्म हो जाएंगी, जिसके आसार अभी भी बहुत अच्छे नहीं हैं। बिहार के सियासी गलियारों में आरजेडी और जेडीयू के बीच एक ‘खास डील’ की भी चर्चा है जिसके मुताबिक आरजेडी नीतीश कुमार को दिल्ली पहुंचाना चाहती है। बदले में जेडीयू तेजस्वी को मुख्यमंत्री की कुर्सी देगी। इसी डील की चर्चा उपेंद्र कुशवाहा अधिकांश मौकों पर करते हैं। इसके खिलाफ ही ओपन लेटर लिखकर कार्यकर्ताओं को उन्होंने पटना भी बुलाया है।
इधर, कांग्रेस की पूरी कोशिश है कि अधिक से अधिक सीटों की मांग रख कर चुनाव बाद बनने वाले तीसरे मोर्चे पर लगाम कसी जाए। पार्टी बेगूसराय, किशनगंज, बेतिया, समस्तीपुर, सासाराम, कटिहा और सुपौल इत्यादि सीट पर चुनावी तैयारी शुरू कर चुकी है। कांग्रेस की इस रणनीति से केवल आरजेडी को पलीता लगेगा।
कांग्रेस के फिलहाल दो मंत्री हैं। एक मुसलमान और दूसरे दलित। इस रणनीति से भी कांग्रेस की नींदे उड़ गईं, क्योंकि वह चाहती है कि कांग्रेस अगड़ों के वोट में सेंध लगाए और बीजेपी के वोटों पर नजर जमाए। कांग्रेस की इस चाल का संबंध सीमांचल और मिथिलांचल की उन दर्जन भर सीटों पर सेंध लगाना है, जहां मुसलमान प्रभावी हैं।
कांग्रेस की कोशिश, तस्वीर बदलने की
कांग्रेस ने जमीन पर लड़ाई शुरू कर दी है। पार्टी के नेता हाथ से हाथ जोड़ो मिशन के तहत बिहार में अब तक 1000 किमी की पैदल यात्रा भी कर चुके हैं। 2009 में दिग्विजय जब लालू यादव से सीटों के बंटवारे को लेकर बातचीत करने की कोशिश कर रहे थे, तो उन्होंने मीडिया में बड़ा बयान दे दिया था। लालू ने कहा था कि कांग्रेस के मुंशी और मैनेजर से सीटों पर बात नहीं करेंगे। कांग्रेस ने इसके बाद 37 सीटों पर उम्मीदवार उतारने का ऐलान कर दिया। इसका फायदा एनडीए को हुआ। 2009 में एनडीए को 32, आरजेडी को 4, कांग्रेस को 2 और निर्दलीय को 2 सीटों पर जीत मिली थी.
गठबंधन के बाद लालू केंद्र में मंत्री भी नहीं बन पाए। हालांकि, उन्होंने बिना शर्त समर्थन दिया था। इसके बाद से अब तक कांग्रेस के कई नेता पार्टी छोड़ चुके हैं। अशोक चौधरी जैसे कद्दावर नेताओं की पूरी बिरादरी जा चुकी है, ऐसे में कांग्रेस का हाईकमान बिहार को लेकर क्या तय करता है, यह देखना दिलचस्प होगा।