पटना। बिहार में मंत्रिमंडल का विस्तार होना है। लालू प्रसाद भी भारत आ चुके हैं। हालांकि, मंत्रिमंडल के विस्तार पर नीतीश कुमार ने अपने बयान में स्पष्ट कहा कि इस बारे में तेजस्वी यादव से पूछ लिया जाए क्योंकि उनको ही निर्णय लेना है। नीतीश ने कहा कि जो मंत्रिमंडल विस्तार की बात है, उसमें आरजेडी, कांग्रेस को फैसला लेना है कि किस-किस को मंत्री बनाया जाना है?
- नीतीश ने कहा कि वे (यानी, कांग्रेस- आरजेडी के) लोग आकर मिले थे और उन्होंने बता दिया था कि वे लोग जल्द से जल्द निर्णय ले लें
- महागठबंधन सरकार में कांग्रेस शामिल है लेकिन पार्टी को झटका लग सकता है
- समाधान यात्रा (Samadhan Yatra) के दौरान सीएम नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) ने गेंद तेजस्वी यादव के पाले में डाल दी, इसे बड़ा बयान माना जा रहा है
- कांग्रेस दो और मंत्री पद की मांग कर रही है, फिलहाल कांग्रेस के दो मंत्री हैं
- नीतीश कुमार के इस बयान से यह साफ है कि कांग्रेस की मांग पर फैसला तेजस्वी ही लेंगे और ऐसे में इसका घाटा कांग्रेस को हो सकता है
कांग्रेस के लिए नीतीश सर्वेसर्वा
इधर एक तरफ नीतीश कुमार ने मंत्रिमंडल के विस्तार के सवाल पर गेंद तेजस्वी यादव के पाले में डाल दी है, तो कांग्रेस नीतीश कुमार को ही सर्वेसर्वा मान रही है। कांग्रेस का कहना है कि नीतीश से बात हुई है और फैसला नीतीश को करना है। बिहार कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश सिंह ने तो तेजस्वी के खिलाफ बयान भी दे दिया है। अखिलेश ने कहा है कि तेजस्वी यादव क्या कह या कर रहे हैं, उन्हें नहीं पता है, बल्कि वह बस इतना जानते हैं कि महागठबंधन के नेता नीतीश कुमार हैं। फिलहाल, कांग्रेस दो और मंत्री पद की मांग को लेकर अपने फैसले पर अडिग है।
आरजेडी कोटे से भी बनेंगे मंत्री
बिहार में महागठबंधन की सरकार बनने के बाद हरेक समीकरण बदला है। अभीआरजेडी कोटे से दो मंत्री हटाए जा चुके हैं। सुधाकर सिंह लगातार नीतीश कुमार के खिलाफ बयानबाजी कर रहे थे, तो उनको भी हटा दिया गया। उनको नोटिस भी दी गयी है। यह जगह भी भरनी है। जेडीयू कोटे की अगर बात की जाए तो सारी सीटें फुल हैं।
क्या है नीतीश की ख्वाहिश?
नीतीश के पास दरअसल अपनी ही समस्याएं काफी हैं। आरजेडी के पितृ-पुरुष लालू प्रसाद भी भारत आ गए हैं।फिलहाल, नीतीश कुमार के लिए सबसे बड़ी समस्या तो उपेंद्र कुशवाहा के विद्रोह से निबटना है, जिन्होंने तेजस्वी को कमान सौंपने की डील के खिलाफ मोर्चेबंदी कर दी है। कुशवाहा पर बीजेपी की निगाहें तो हैं ही, लालू की भी होंगी। अगर कुशवाहा अपने साथ समर्थन जोड़ ले जाते हैं तो आरजेडी और बीजेपी दोनों ही उनके साथ डील करने की इच्छुक होगी।
नीतीश का सबसे बड़ा सपना वैसे भी तीसरे मोर्चे के बिना पूरा होगा नहीं, तो वह इसके निर्माण पर अधिक ध्यान देंगे। फिलहाल, तो नीतीश की पूरी चुनौती यह है कि वह तेजस्वी और कुशवाहा दोनों की चुनौती को कैसे साधते हैं।