बौद् धर्म और महात्मा गौतम बुद्द के बारे में सभी ने सुना होगा। हम सबने ये भी सुना है कि सिद्धार्थ को बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था। बोधिवृक्ष के नीचे बैठकर ज्ञान मिलने के बाद वो गौतम बुद्ध कहलाए। बिहार के गया में ये बोधि वृक्ष है लेकिन हममे से कम ही लोग जानते है कि बोधि वृक्ष का ही नहीं बल्कि उसके पत्तों की भी कितना महत्तव है। बोधिवृक्ष के पत्तों को लोग अपने घर ले जाते है उनकी पूजा की जाती है। श्रृद्दालु इन पत्तों के गिरने का दिनों तक इंतजार करते हैं। इन पत्तों की पूजा होती है कुछ लोग तो अपने पूजा घर में इन पत्तों को फ्रेम कराके रखते हैं और देवता की तरह इनकी पूजा होती है।
बोधिवृक्ष की सुरक्षा के लिए बिहार पैरामिलेट्री फोर्स के 360 जवान लगे है। रात दिन वृक्ष की सुरक्षा की जाती है। बौद्द धर्म के महत्तव के इस पेड़ को कुछ लोगों ने काटने की कोशिश की उसके बाद से इसकी सुरक्षा बढ़ा दी गई। इस पेड़ के आसपास लोहे का घेरा बनाया गया है। इसके अलावा पेड़ की देखरेख के लिए वैज्ञानिकों की एक पूरी टीम काम करती है। वैज्ञानिकों की ये टीम देहारादून से गया जाती है। साल में तीन से चार बार पेड़ को जांचा परखा जाता है कि किसी तरह की कोई बीमारी तो नही लग रही जरूरी दवाओं की छिड़काव किया जाता है और जरूरी लेप लगाए जाते हैं. पेड़ की टहनियां इतनी बड़ी और फैली है कि उनको लोहे के 12 खंबो से सहारा दिया गया है। हर साल पांच लाख लोग बोधिवृक्ष के दर्शन के लिए आते हैं और इनमें से आधे विदेशी होते हैं।