पेशावर। पठानों के शहर के नाम से मशहूर पेशावर की पुलिस लाइन्स की मस्जिद में सोमवार को हुए धमाके में 70 से ज्यादा पुलिसकर्मियों की मौत हो गई। 150 से ज्यादा घायल हैं। यह फिदायीन हमला था और खैबर पख्तूख्वा राज्य के इस शहर में इस तरह के हमले होते रहे हैं।
- 2014 में यहां आर्मी पब्लिक स्कूल (APS) पर तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) ने अटैक किया था
- उस हमले में 141 बच्चों समेत कुल 148 लोग मारे गए थे
- सोमवार यानी 30 जनवरी को हुए हमले की जिम्मेदारी भी TTP ने ली है
- पाकिस्तानी तालिबान की जड़े 2002 के बाद जमीं जब अमेरिका ने तालिबान पर हमला किया और कई अफगानी वहां से भागकर पाकिस्तान चले गए
- 2007 में 13 गुट मिलकर एक हो गए और तहरीक यानी अभियान का हिस्सा बन गए
- इमरान खान तालिबान को खुलकर समर्थन देते हैं, वह पाकिस्तानी संसद में ओसामा को शहीद बता चुके हैं
हमले के बाद उठे सवाल
इस हमले के बाद कई सवाल उठते हैं। पहला सवाल तो यह है कि सुरक्षा के तीन स्तरों को पार कर भला फिदायीन मस्जिद में घुसा कैसे, क्या उसको अंदर से कुछ सपोर्ट मिल रहा था या फिर पाकिस्तानी फौज का इंटेलिजेसं पूरी तरह नाकाम रहा है। इसके अलावा सवाल यह है कि पाकिस्तान में जो 5000 तालिबानी हैं, जिनके बारे में इमरान खान की सरकार में गृहमंत्री रहे रशीद भी स्वीकारोक्ति कर चुके हैं, वे क्या अपना रुख बदलेंगे या वैसे ही रहेंगे?
पाकिस्तानी फौज और सरकार की सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि अब बलूचिस्तान के विद्रोही भी TTP से हाथ मिला चुके हैं। दूसरी तरफ, अफगान तालिबान TTP को पूरी तरह सपोर्ट कर रहे हैं। कुल मिलाकर पाकिस्तान के लिए ये बेहद बुरे हालाता हैं। अफगान तालिबान तो पाकिस्तान-अफगानिस्तान बॉर्डर यानी डूरंड लाइन को भी नहीं मानते। इस विवाद की वजह से पिछले दिनों काफी फायरिंग भी हुई थी। इसमें पाकिस्तान के कई सैनिक और आम नागरिक मारे गए थे।
- 2002 में अमेरिकी सेना 9/11 आतंकी हमले का बदला लेने अफगानिस्तान में धावा बोलती है
- फगानिस्तान में अमेरिकी कार्रवाई के डर से कई आतंकी पाकिस्तान के कबाइली इलाके में छिप जाते हैं
- इसी दौरान पाकिस्तान की सेना इस्लामाबाद की लाल मस्जिद को एक कट्टरपंथी प्रचारक के कब्जे से मुक्त कराती है
- हालांकि, कट्टरपंथी प्रचारक को कभी पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI का करीबी माना जाता था, लेकिन इस घटना के बाद स्वात घाटी में पाकिस्तानी आर्मी की खिलाफत होने लगी
- इससे कबाइली इलाकों में कई विद्रोही गुट पनपने लगे
अफगानिस्तान नहीं मानता है डूरंड लाइन
पाकिस्तान और अफगानिस्तान जिस सीमा के जरिए अलग होते हैं, उसे डूरंड लाइन कहा जाता है। पाकिस्तान इसे सीमारेखा मानता है, लेकिन तालिबान का साफ कहना है कि पाकिस्तान का खैबर पख्तूनख्वा राज्य उसका ही हिस्सा है।
- 15 अगस्त 2021 को अफगानिस्तान की सल्तनत पर तालिबान का कब्जा हो गया और उसने 5 दिन बाद ही, यानी 20 अगस्त को साफ कर दिया कि पाकिस्तान को अफगानिस्तान का हिस्सा खाली करना होगा
- पाकिस्तान ने इसका विरोध किया और वहां फौज तैनात कर दी, जिसके बाद तालिबान ने वहां मौजूद पाकिस्तानी चेक पोस्ट्स को उड़ा दिया
- इस इलाके में कई पाकिस्तानी फौजी मारे जा चुके हैं और कई तालिबान के कब्जे में हैं
आगे की राह पाक के लिए मुश्किल
अब सवाल ये है कि आगे क्या होगा? भुखमरी की राह पर खड़ा पाकिस्तान लगभग कंगाल हो चुका है। यही नहीं, उसने आतंक की नर्सरी लगाकर जिन आतंकियों को पाला-पोसा, वही उसके लिए अब शैतान बन चुके हैं। अमेरिका भी पाकिस्तान को उसके हाल पर छोड़ चुका है और पाकिस्तान का ऑल वेदर फ्रेंड चीन भी राह अलग कर चुका है। पाकिस्तान को किसी मसीहा की सख्त जरूरत है।
प्रकाश कुमार पांडेय