padma shri award 2023:गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर पद्म पुरस्कार विजेताओं के नामों का ऐलान कर दिया गया है। उत्तरप्रदेश के पूर्व सीएम मुलायम सिंह यादव और ORS के खोजकर्ता डॉ.दिलीप महलानाबिस को मरणोपरांत देश का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण दिया गया है। इसके साथ ही तबला वादक जाकिर हुसैन, आर्किटेक्ट बालकृष्ण दोषी और भारतीय मूल के अमेरिकी मेथेमेटिशियन श्रीनिवास वर्धन को भी पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया है। वहीं कुमार मंगलम बिड़ला और सुधा मूर्ति समेत 9 हस्तियों को पद्म भूषण से नवाजा गया है। 91 हस्तियों को पद्मश्री सम्मान दिया गया है, जिनमें मप्र के चार लोगों के नाम शामिल है।
इन चार हस्तियों को पद्मश्री अवार्ड
जिन हस्तियों को पद्मश्री सम्मान दिया जाएगा उनमें मध्य प्रदेश के चार लोगों के नाम भी शामिल हैं। जिनमें उमरिया जिले में रहने वाली जोधइया बाई और झाबुआ में रहने वाले दंपति रमेश परमार उनकी पत्नी शांति परमार को कला क्षेत्र में बेहतर काम करने के लिए पद्मश्री पुरस्कार दिया जाएगा। इसी तरह जबलपुर के डॉक्टर एमसी डावर को चिकित्सा क्षेत्र में सराहनीय कार्य करने के लिए पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित किया जाएगा। बता दें डॉक्टर डावर आज भी फीस के रुप में 20 रुपये लेकर मरीजों को इलाज करते हैं।
आज भी 20 रुपये फीस लेते हैं डॉ.डावर
मप्र के जबलपुर जिले के डॉक्टर मुनिश्चर चंद्र डावर सेना में में अपनी सेवा दे चुके हैं। सेना से सेवानिवृत्त होने के बाद भी उन्होंने जनहित में मरीजों का उपचार जारी रखा। वे पहले दो रुपये फीस लेकर मरीजों का उपचार करते थे। आज के इस दौर में भी डॉ.डावर 20 रुपये की फीस लेकर मरीजों का उपचार रहे हैं। डॉक्टरी को सेवा का भाव मानकर वह गरीबों का उपचार करते आ रहे हैं। जिसस वे जबलपुर ही नहीं प्रदेश भर में चर्चित हैं। चिकित्सा क्षेत्र में इस बेहतर योगदान के लिए उन्हें पद्मश्री अवार्ड प्रदान किया जा रहा है।
1971 की जंग के दौरान किया सैनिकों का इलाज
डॉक्टर एमसी डाबर सेना से रिटायर्ड है डॉक्टर ने जबलपुर से ही एमबीबीएस की डिग्री हासिल की थी। कड़ी मेहनत और लगन से सेना में भर्ती हुए और 1971 के भारत-पाकिस्तान के जंग के दौरान सैकड़ों सैनिकों का इलाज किया। जंग खत्म होने के बाद एक बीमारी की वजह से डॉक्टर डाबर को रिटायरमेंट लेना पड़ा. लेकिन अपने गुरु से मिले ज्ञान को उन्होंने अपने जीवन में उतारा और लोगों का इलाज शुरू कर दिया। डॉक्टर बताते हैं कि उन्होंने 1986 में 2 रुपए फीस लेना शुरू की थी जिसे बाद में 3 रुपए और फिर 1997 में 5 और उसके बाद 15 साल बाद 2012 में 10 रुपए और अब महज 20 रुपए फीस ले रहे हैं। बढ़ती उम्र के बाद डॉक्टर साहब गरीबों की सेवा करना नहीं भूले हैं। कभी क्लीनिक तो कभी घर पर ही मरीजों को देखने के लिए तैयार हो जाते हैं।
इस दंपती ने आदिवासी गुड्डे गुड़िया को दिलाई पहचान
पश्चिमी मध्यप्रदेश के आदिवासी अंचल झाबुआ के खाते में एक और बड़ी उपलब्धि जुड़ गई है। यहां की कलाकार शांति परमार और उनके पति रमेश परमार को कला के क्षेत्र में संयुक्त रूप से पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर घोषित किए गए पद्मश्री पुरस्कारों में उनका नाम शामिल हैं। परमार दंपति ने आदिवासी गुड्डे गुड़ियों के साथ ही लोक संस्कृति से जुड़े अन्य हस्तशिल्प को पहचान दिलाने में अहम भूमिका निभाई है। वे वर्ष 1993 से इस क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं। शासन द्वारा प्रतिवर्ष आयोजित होने वाले हस्त शिल्प मेलो में उनके द्वारा सहभागिता की जा रही है। इतना ही नहीं उन्हें जिला स्तर से लेकर प्रदेश स्तर तक कई पुरस्कार भी मिल चुके हैं। रमेश परमार कहते हैं उन्होंने अपनी पत्नी शांति को वर्ष 1993 में टीसीपीसी के माध्यम से हस्तशिल्प प्रशिक्षण दिलवाया था। परमार दंपति ने विभिन्न विभागों के समन्वय से करीब 400 महिलाओं को प्रशिक्षित भी किया। पद्मश्री पुरस्कार के लिए नाम आने पर परमार दंपत्ति ने कहा यह पुरस्कार पूरे झाबुआ जिले का पुरस्कार है। इससे हमारी लोक संस्कृति को और भी विस्तृत पहचान मिलेगी।
जोधाइया ने दिया कला क्षेत्र में सराहनीय योगदान
वहीं मध्यप्रदेश के ही उमारिया जिले की बैगा जनजातीय की जोधाइया बाई को कला क्षेत्र में सराहनीय योगदान के लिए पद्मश्री दिया जाएगा। 84 साल की जोधाइया बाई ने पति के निधन के बाद पेंटिंग बनाना शुरू किया था। उन्हें पशु पक्षी की पेंटिंग बनाना पसंद है। बता दें 2019 में जोधाइया बाई की बनाई गई पेटिंग की प्रदर्शनी इटली में भी लगाई गई थी। इससे पहले उन्हें कई बड़े अवार्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है।
युवा पीढ़ी को करा रहीं ट्राइबल आर्ट से रुबरु
मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल उमरिया जिले के एक छोटे से गांव लोढ़ा में रहने वाली जोधइया बाई 40 साल से भी ज्यादा समय से आदिवासी पेंटिंग्स बना रही हैं। 82 साल की उम्र में भी उनके हाथ कैनवास पर खूबसूरत चित्रों को उकेर रहे हैं। वे प्रदेश की जनजातीय कला को अपने रंगों से सजा कर युवा पीढ़ी को मध्य प्रदेश के ट्राइबल आर्ट से रूबरू करा रही हैं।
कभी मजदूरी कर पेट भरती थीं जोधइया बाई
जोधइया बाई के जीवन का लंबा समय मजदूरी में गुजरा, लेकिन पति की मौत के बाद परिवार पालने के लिए उन्होंने किसी दूसरे काम को करने की ठानी और आदिवाली कला को अपने रंगों से सजाने का सफर शुरू हुआ। पेंटिंग्स के लिए वे देश के कई शहरों का दौरा कर चुकी हैं। जोधइया बाई भगवान, जानवरों और तरह-तरह के चित्र बनाती हैं, उनके चित्रों को देखने वाला बस उन्हें देखते ही रह जाता है।