झारखंड में विधानसभा चुनाव के पहले चरण की वोटिंग जारी है। झारखंड के चुनावी रण में मुख्य मुकाबला हेमंत सोरेन की झारखंड मुक्ति मोर्चा और बीजेपी के बीच ही माना जा रहा है। पहले चरण में 43 सीटों पर वोटिंग हो रही है। दूसरे चरण में 20 नवंबर को 38 विधानसभा सीटों के लिए वोट डाले जाएंगे। चुनाव के लिए राज्य में भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने चुनाव प्रचार की कमान स्वयं अपने हाथ में रखे हुए हैं।
प्रदेश के अधिकांश नेताओं को चुनाव मैदान में उतारा है तो दूसरी ओर कांग्रेस की बात करें तो पार्टी के ज्यादातर बड़े नेता जहां चुनाव मैदान से दूर हैं, तो वहीं कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व को भी इस विधानसभा चुनाव से कोई अधिक मतलब नजर नहीं आ रहा है।
- कांग्रेस का नहीं कोई चुनाव लड़ाने वाला
- झारखंड में दूसरे चरण का मतदान
- दो दो मुस्लिमों को बनाया प्रभारी
- दोनों में से एक भी सक्रिय नहीं
पहले चरण में जहां मतदान हो रहा है, प्रचार के दौरान इन इलाकों में राहुल गांधी की महज दो दिन रैलियां हुईं। इसके बाद कोई फॉलोअप भी नहीं किया गया है। न ही पार्टी का कोई दूसरा राष्ट्रीय नेता चुनाव के प्रचार में नजा आया। कांग्रेस ने झारखंड में विधानसभा चुनाव से करीब तीन महीने पहले केशव महतो कमलेश को पार्टी प्रदेश अध्यक्ष बनाया था। लेकिन पार्टी प्रदेशाध्यक्ष न तो चुनाव लड़ रहे हैं और न चुनाव लड़वाते नजर आ रहे हैं। वहीं पार्टी के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष राजेश ठाकुर भी इस बार के चुनाव नजर नहीं आ रहे हैं। करीब पांच साल विधानसभा में पार्टी की ओर से विधायक दल के नेता रहे आलमगीर आलम इस समय जेल की सलाखों के पीछे हैं। चुनाव में उनकी पत्नी मैदान में लड़ रहीं हैं। वहीं विधायक दल के मौजूदा नेता रामेश्वर उरांव ने स्वास्थ कारणों के चलते वे अपने क्षेत्र से बाहर जाकर प्रचार नहीं किया।
जम्मू कश्मीर के निवासी गुलाम अहमद मीर झारखंड के प्रभारी
पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व की बात अगर की जाए तो पार्टी ने किसी सलाह पर जम्मू कश्मीर के निवासी गुलाम अहमद मीर को झारखंड का प्रभारी नियुक्त किया है यह आज तक पता नहीं चला। उसके बाद बिहार के रहने वाले तारिक अनवर को चुनाव प्रभारी या चुनाव पर्यवेक्षक नियुक्त किया गया।
बता दें चुनावों के दौरान यह कहा जाता है कि मुस्लिम मतदाता कांग्रेस को छोड़ कर कहीं किसी पार्टी की ओर झुकते नहीं है। इसके बाद भी झरखंड में दो मुस्लिम नेताओं को कांग्रेस की ओर से चुनावी कमान सौंप दी गई। इन दोनों में से भी कोई झारखंड की सड़कों पर प्रचार करता नजर नहीं आाया। कम से कम पहले चरण के मतदान तक तो यह नेता सक्रिय नहीं नजर आए। जम्मू कश्मीर के रहने वाले गुलाम अहमद मीर की बात करें तो वे प्रचार कर भी नहीं सकते, क्योंकि गुलाम मीर पिछले दो साल के दौरान रांची को छोड़ दें तो इसके अलावा संभवतः कहीं गए ही नहीं हैं। तारिक अनवर प्रचार कर सकते थे, लेकिन चुनाव में उनकी भी सक्रियता नहीं दिखाई दे रही है।
भाजपा के चुनाव प्रभारियों से कांग्रेस के चुनाव प्रभारियों की तुलना करें तो उनका प्रदर्शन महज 10 फीसदी भी नहीं दिखाई देता है। झारखंड में देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस इस भरोसे पर विधानसभा चुनाव लड़ रही है कि झामुमो के हेमंत सोरेन के प्रति सद्भाव होगा तो राज्य में जेएमएम के साथ उसे भी वोट मिल जाएंगे।
(प्रकाश कुमार पांडेय)