दीपोत्सव 2024 : जानें दीपावली पर कैसे करें पंडित जी के बिना मां लक्ष्मी की पूजा, ये है पूजन की संपूर्ण विधि
पांच दिनों के इस महापर्व में दिवाली सबसे खास होती है। वहीं इस पंचदिवसीय पर्व में हर दिन अलग—अलग देवी देवताओं की पूजा अर्चना की जाती है। दीपावली पर पंडित जी के बिना कैसे करें मां लक्ष्मी की पूजा अर्चना करें, उन्हें प्रसन्न करें जानें पूजन की क्या है संपूर्ण विधि।
दीपावली का त्योहार पौराणिक काल से मनाया जाता रहा है। हिंदू धर्म में इस त्यौहार का बहुत महत्व है। इस दिन माता लक्ष्मी और विघ्नहर्ता श्री गणेश जी की पूजा पूरे विधि विधान से की जाती है। लेकिन पंडित जी के बगैर घर पर किस तरह आसानी से माता लक्ष्मी की पूजा कैसे करें आइए जानते हैं।
भारत का सबसे खास और प्रसिद्ध त्योहार है दीपावली
भारत के साथ दुनिया के कई हिस्सों में मनाते हैं दीपोत्सव
दीपावली से पहले ही लोग करते हैं घर की साफ सफाई
इस दिन दीपों से सजाते हैं अपने घर, की जाती है आतिशबाजी
दीपावली भारत का सबसे खास और प्रसिद्ध त्योहार है। यह महापर्व देश भर के साथ ही -साथ दुनिया के कई अलग अलग हिस्सों में भी उत्साह पूर्वक मनाया जाता है। इस त्योहार को रोशनी का पर्व भी कहा जाता है। दीपावली से पहले ही लोग घर की साफ सफाई और रंग रोगन करते हैंं। इस दिन अपने घर दीपों से सजाते हैं। आतिशबाजी की जाती है। दीपावली का यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का भी प्रतीक माना जाता है। इस दिन विशेष तौर पर धन और समृद्धि की देवी माता लक्ष्मी की विशेष पूजा अर्चना की जाती है।
इस दिन माता लक्ष्मी करती हैं धरती का भ्रमण
हिन्दु धर्म में लोग मानते हैं कि माता लक्ष्मी इस दिन धरती का भ्रमण करती हैं। वे अपने भक्तों पर अपनी कृपा दृष्टि बरसाती हैं। दीपावली पर बगैर पंडित जी के भी पूरे विधि विधान से मां लक्ष्मी की पूजा की जा सकती है।
जानें क्या है मां लक्ष्मी की पूजा करने की सरल विधि
दीपावली के दिन सबसे पहले पूजा स्थल और उसके आसपास साफ-सफाई की जाना चाहिए। यह पूजा की शुरुआत से पहले सबसे महत्वपूर्ण कार्य है कहा जाता है कि माता लक्ष्मी स्वच्छ और पवित्र स्थान पर ही निवास करती हैं। इसके बाद पूजा स्थान को रंगोली और फूलों से सजाएं। इसके लिए आप एक छोटा मंडप भी बना सकते हैं। मंडप न बना पाने की स्थिति में एक चौकी पर माता लक्ष्मी की प्रतिमा या तस्वीर को स्थापित कर सकते हैं। चौकी पर सफेद या लाल रंग का वस्त्र बिछाना चाहिए। उस वस्त्र पर मां लक्ष्मी के साथ विघ्नहर्ता श्री गणेश जी की प्रतिमा या तस्वीर को स्थापित करें। इसके बाद नारियल, मिष्ठान, फूल लाल या सफेद अर्पित करें। धूप बत्ती के साथ कपूर और शुद्ध घी का दीपक जलाएं। साथ ही अक्षत , कुमकुम, रोली, गंगाजल, पंचामृत जिसमें दूध, घी, शहद, दही और मिश्री हो साथ ही पान के पत्ते पूजन में अर्पित करना चाहिए। इसके बाद ही मां लक्ष्मी की पूजा प्रारंभ करें। पूजा से पहले पूजा स्थल के सामने बैठकर मां लक्ष्मी का ध्यान लगाएं। मन को शांत करें।
मां लक्ष्मी के साथ करें विघ्नहर्ता श्री गणेश का ध्यान
माता लक्ष्मी और विघ्नहर्ता श्रीगणेश का ध्यान कर उनका आवाहन करें। लक्ष्मी जी को शुद्धजल अर्पण करें और फिर पंचामृत से स्नान उन्हें कराएं। तत्पश्चात स्वच्छ जल से स्नान कराएं। अब माता लक्ष्मी को रोली और अक्षत का तिलक करें। फूल अर्पित कर मिठे पकवानों का भोग लगाएं। इसके बाद नारियल और पान के पत्ते अर्पित करना चाहिए।
पूजा अर्चना के समय मां लक्ष्मी के मंत्र का जाप अवश्य करें। मां लक्ष्मी की पूजा के दौरान जिन मंत्रों का विधि विधान से मंत्रों का जाप किया जा सकता उनके “ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः” “ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्मीभयो नमः” शामिल है। इस मंत्र का कम से कम 108 बार जाप करें। धन संपत्ति को पाने के लिए मां लक्ष्मी की पूजा अर्चना के समय इन मंत्रों का जाप किया जाता है। पूजा पूर्ण होने पर आखिर में माता लक्ष्मी की आरती अवश्य करें। कपूर जलाकर आरती करन चाहिए। इससे मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। परिवार के सभी सदस्यों को आरती में शामिल होना चाहिए। आरती के बाद मां लक्ष्मी को अर्पित भोग का प्रसाद स्वयं भी ग्रहण करें और दूसरों को भी बांटे।
प्रभु श्री राम के अयोध्या लौटने पर किया था दीपों से स्वागत
रोशनी के पर्व दीपोत्सव का त्योहार का न सिर्फ केवल धार्मिक महत्व होता है बल्कि सामाजिक महत्व भी है। इस त्योहार ये हमें एक-दूसरे के साथ मिलकर रहने और आपस में खुशियां बांटने की सीख मिलती है। बता दें दीपावली का त्योहार बुराई पर अच्छाई की विजय का भी प्रतीक माना जाता है। यह हमें अपने मन के अंधकार को दूर करने और मन में ज्ञान का प्रकाश फैलाने का भी संदेश देता है। हिंदू मान्यता के अनुसार रोशनी के इस त्योहार का मुख्य कारण प्रभु श्रीराम का चौदह वर्षों के वनवास खत्म कर जंगल से अयोध्या लौटना है। प्रभु श्री राम, माता जानकी और लक्ष्मण जी की वनवास काट कर जंगल से वापसी पर अयोध्यावासियों ने दीप जलाकर उनका भव्य स्वागत किया था। इसके बाद से दीपक जलाने की परंपरा चली आ रही है। जिसे दीपोत्सव या दीपावली का पर्व कहा जाता है।
(प्रकाश कुमार पांडेय)