हरियाणा में कांग्रेस की हार का महाराष्ट्र,झारखंड पर पड़ेगा यह असर …UP में अखिलेश ने बनाई यह रणनीति…
खत्म हुई कांग्रेस की बार्गेनिंग पावर
लोकसभा चुनाव 2024 के बाद कांग्रेस नेताओं को हरियाणा सभा चुनाव से बड़ी उम्मीद थी। कांग्रेस को यकीन था कि हरियाणा चुनाव में राहुल गांधी का करिश्मा चलेगा। लेकिन, कांग्रेस की हार पर अब गठबंधन में उसके सहयोगी दल भी तंज कसते नजर आ रहे हैं। शिवसेना यूटीबी की ओर से तो कांग्रेस को नसीहत ही दी गई । हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के साथ कांग्रेस के अरमानों पर पानी फिर गया है। बीजेपी लगातार तीसरी बार सरकार बनाने जा रही है। हरियाणा में कांग्रेस की हार का प्रभाव झारखंड और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के साथ ही UP में 10 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव पर भी नजर आएगा। कांग्रेस अब तक इन चुनाव में सहयोगियों से अधिक सीट मांग रही रही थी, लेकिन अब उसकी बार्गेनिंग पॉवर अब कम हो गई है।
लोकसभा चुनाव 2024 के बाद कांग्रेस को हरियाणा में बहुत उम्मीद नजर नजर आ रही थी।
लोकसभा चुनाव में बीजेपी के जीत के रथ को रोकने वाली कांग्रेस को यह यकीन था कि इस बार हरियाणा विधानसभा चुनाव में राहुल गांधी का करिश्मा चलेगा, लेकिन नतीजों में बीजेपी एक बार फिर प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में लौट आई।
हरियाणा की हार … महाराष्ट्र पर असर
हरियाणा विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस की हार पर सबसे पहले शिवसेना उद्धव गुट ने प्रतिक्रिया दी है। पार्टी की नेता प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा कांग्रेस हमेशा बीजेपी से सीधी फाइट में कमजोर पड़ जाती है। उसे अपनी रणनीति एक बार फिर बदलना होगी। प्रियंका चतुर्वेदी ने इशारों-इशारों में साफ कह दिया कि कांग्रेस चुनाव के दौरान सीधे मुकाबले में बीजेपी को परास्त नहीं पाती है। अब गौर करने ने वाली बात है कि प्रियंका चतुर्वेदी ने आखिरकार कांग्रेस पर निशाना क्यों साधा? इसका जवाब महाराष्ट्र में कांग्रेस की ओर से विधानसभा चुनाव से पहले मांगी जा रही सीटों में मिलता है। बता दे नवंबर दिसंबर में महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव होने हैं। पिछली बार कांग्रेस एनसीपी के साथ मिलकर चुनाव के मैदान की थी। कांग्रेस ने महाराष्ट्र में 125 प्रत्याशी उतारे थे लेकिन उसे 44 सीटों पर ही जीत मिली थी। वहीं एनसीपी के 125 प्रत्याशी में से 54 सीटों पर जीत मिली थी।
पिछली बार 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद महाराष्ट्र में राजनीतिक तस्वीर ही बदली है। अब कांग्रेस का चुनाव में गठबंधन एनसीपी (शरद पवार) और शिवसेना (उद्धव) गुट के साथ है। वहीं शिवसेना और बीजेपी ने साथ मिलकर 2019 में विधानसभा की 124 सीट पर चुनाव लड़ा था। इस बार सीटों का बंटवारा उलझ गया है। तीनों दलों में सबसे अधिक सीट सीट लेने की होड़ मची है। कांग्रेस को उम्मीद थी कि हरियाणा चुनाव मैं उसकी जीत होती है तो उसकी बार्गेनिंग पॉवर बढ़ जाएगी, लेकिन हरियाणा विधानसभा के चुनाव में मिली हार ने कांग्रेस को बैकफुट पर लाकर खड़ा कर दिया है। ऐसे में मौके का फायदा उठाकर शिवसेना उद्धव गुट फ्रंटफुट पर आ गई है और उसने कांग्रेस को यह बताना शुरू कर दिया है कि बगैर सहयोगियों के कांग्रेस चुनाव में बीजेपी को हरा नहीं पाती है।
हरियाणा की हार झारखंड में कांग्रेस बेजार
हरियाणा विधानसभा के नतीजों का का प्रभाव झारखंड विधानसभा के चुनाव पर भी पड़ना तय माना जा रहा है । हालांकि, झारखंड में पहले से ही हेमंत सोरेन की झारखंड मुक्ति मोर्चा JMM बड़े भाई की भूमिका में है, लेकिन इस बार के चुनाव में कांग्रेस ज्यादा सीट मांग रही थी। 2019 के विधानसभा चुनाव में 41 सीट पर JMM तो कांग्रेस 31 सीट पर चुनाव लड़ी थी, जबकि आरजेडी के खाते में 7 सीटें आईं थीं। 31 सीट में से कांग्रेस महज 16 सीट जीत पाई थी। 2019 के परफॉर्मेंस को देख तो वैसे भी JMM ने कांग्रेस को ज्यादा सीट न देने का मन बना लिया था हालांकि लोकसभा चुनाव के नतीजों से उत्साहित कांग्रेस ने 33 सीट मांगी थीं। अब हरियाणा के नतीजों ने शिवसेना (उद्धव) की ही तरह JMM को भी मौका दे दिया है कि कांग्रेस की बार्गेनिंग पॉवर को कम कर दिया जाए। JMM अब वह कांग्रेस को विधानसभा की 31 सीटें ही देने की अपनी रणनीति पर कायम रह सकती है। UP उपचुनाव में कांग्रेस को कितनी सीटें मिलेंगी?
कांग्रेस को हरियाणा में हार का सबसे अधिक असर उत्तर प्रदेश में उठाना पड़ सकता सकता है।
दरअसल हरियाणा के चुनाव में कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी को हरियाणा में यह कह कर सीट देने से इनकार कर दिया था कि यहां उनका जनाधार नहीं है हरियाणा विधानसभा चुनाव और उसके नतीजों से पहले यूपी की 10 सीटों पर होने वाले उपचुनाव को लेकर कांग्रेस और समाजवादी पार्टी में एक तरह से तलवार खिंची हुई थी कांग्रेस उप चुनाव में 5 सीट मांग रही थी अब हरियाणा में मिली हार के बाद कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी परेशानी यह है कि वह किस मुंह से सीट मांगेगी वहीं दूसरी ओर हरियाणा में गठबंधन के तहत पार्टी को सीट न मिलने पर अखिलेश यादव मोन रह गए थे गए थे, लेकिन अब अखिलेश यादव इसका बदला यूपी में लेने से चूकेंगे या नहीं? हालांकि यह देखने वाली बात होगी कि वे कांग्रेस को कितनी सीट देते हैं ।।