हरियाणा में कांग्रेस की हार की क्या है असली वजह? आखिर क्यों पीट गई कांग्रेस की फिल्म
चुनाव आयोग ने 16 अगस्त को जम्मू कश्मीर के साथ हरियाणा विधानसभा चुनाव की तिथि घोषित की थी। इसके बाद से ही चुनावी बयार बहने लगी और प्रचार के साथ चुनावी माहौल नजर आने लगा था। कांग्रेस चुनाव प्रचार के शुरू दिन से ही हरियाणा में यह मानकर चल रही थी कि चुनाव की पटकथा उसकी स्याही से लिखी जा रही है और उसे यकीन था कि चुनाव परिणाम वाले दिन इस पटकथा के आधार पर बनी फिल्म सुपर डुपर साबित होगी, लेकिन जैसा कि कहा जाता है, फिल्म हिट रहेगी या फ्लॉप यह कोई नहीं जानता।
कांग्रेस के सामाजिक गठजोड़ ने काम नहीं किया
जाट दलित मुसलमान नहीं है नहीं आए बीजेपी के काम
दलित वोट बैंक का बड़ा हिस्सा बीजेपी को मिला
एग्जिट पोल के साथ गलत साबित हुईं एजेंसी
हरियाणा का चुनाव कांग्रेस के लिए एक बड़ा सबक है। संख्या बल और सामाजिक रुतबे के दम पर चुनावी मुहिम में जमकर पसीना बहाया और अपने पक्ष में नतीजे बदलने की पूरी कोशिश की। नतीजा उसके पक्ष में आए यह दावा कांग्रेस के बड़े नेता दिल्ली से हरियाणा तक कर रहे थे। संख्या बल और सामाजिक रुतबे के दम पर चुनाव मुहिम सफल नहीं होती। उसकी हवा की जीत में बदलने की गारंटी नहीं होती। हरियाणा में भी यही हुआ। हरियाणा के विधानसभा के चुनाव में जाट समुदाय ने अहम भूमिका निभाई। यह भूमिका ठीक उसी तरह थी, जैसे उत्तर प्रदेश और बिहार की राजनीति में यादव समुदाय निभाता रहा है। कांग्रेस ने पहले से बेहतर प्रदर्शन किया लेकिन चुनाव में जीत नहीं मिली। इस तरह से बिहार में तेजस्वी यादव और यूपी में अखिलेश यादव की पार्टी का हश्र हुआ था। इस तरह कांग्रेस को भी हरियाणा में मुंह की खाना पड़ी। एक सबक यह भी है कि एग्जिट पोल सर्वे करने और करने वाली एजेंसियों पर भरोसा करना एक बार फिर गलत साबित हुआ। हरियाणा में मतदान के बाद जारी हुए एग्जिट पोल कांग्रेस को भारी बहुमत दिलाते नजर आ रहे थे लेकिन जब परिणाम आए तो यह एग्जिट पोल एग्जैक्ट साबित नहीं हुए और कांग्रेस को मुंह की खाना पड़ी। लोकसभा चुनाव में मुंह के बल गिरने वाले इन एग्जिट पोल एजेंसियों पर लोग भरोसा क्यों करते हैं। हरियाणा में एग्जिट पोल और जाट समुदाय की भविष्यवाणी दोनों एक जैसा काम कर रही थी। जिससे जबरदस्त असर हुआ और कांग्रेस चुनाव में जीत की उम्मीद लगाए बैठी। एग्जिट पोल के आने के बाद खुद बीजेपी के नेताओं का विश्वास हरियाणा में थोड़ा कमजोर पड़ने लगा था।
सियासी शक्तियों को दलित समुदाय के मतदाताओं को जो अपने पक्ष में मानकर चलते हैं। इसके चलते हुए इस मतदाता मंडल के नेताओं का तिरस्कार करने से भी नहीं चुकते और अंत में उन्हें चुनाव में मुंह की खाना पड़ती है। यही कांग्रेस के साथ हुआ। चौथा सबक उन राजनीतिक समीक्षकों के लिए है जो अपनी वरिष्ठता के बावजूद शोरगुल और तथा कथित हवा के फेर में फंसकर अपनी राय बदलते रहते हैं। उन्हें भी परिणाम के बाद पछताते हुए देखा गया। हरियाणा में बीजेपी चुनाव में सफल तो रही लेकिन यह उसे भी पता है कि उसकी जीत की वजह क्या है और कांग्रेस की हार क्यों हुई है। कांग्रेस को भी यह स्पष्ट तौर पर पता है कि हरियाणा के चुनाव में उसकी हार की वजह क्या है। उसे क्यों हार का सामना करना पड़ा बड़ी वजह साफ तौर पर नजर आती है कि कांग्रेस में जाट,दलित और मुस्लिम पर से प्रभावशाली नजर आने वाला सामाजिक गठजोड़ गठजोड़ बनाया था। उसने भी काम नहीं किया। हरियाणा में दलित वोट एक बड़ा हिस्सा बीजेपी के पाले में चला गया। बीजेपी को वोट देने वाले दलितों ने स्वयं को हरियाणा के गैर जाट मानकर वोट दिया तो वहीं ओबीसी समुदाय का रुझान भी बीजेपी की ओर नजर आया। वहीं भाजपा पिछले 10 साल से जाट प्रभाव को तोड़ने में जुटी थी। जिसमें वह सफल रही।
कांग्रेस की रणनीति बन गई पार्टी के लिए सजा
हरियाणा में कांग्रेस की चुनावी रणनीति उसके लिए सजा बन गई। पार्टी के टिकट बंटवारे में 90 विधानसभा सीट में से करीब 70 फ़ीसदी टिकट पर हुड्डा की पसंद के नेताओं को टिकट दिए गए। जिनमें से कई चुनाव में हार गए। दूसरी ओर चुनाव प्रचार के शुरुआत से हरियाणा में कांग्रेस ने यह फ़िर खूब दोहराया कि भले ही कुमारी शैलजा और भूपेंद्र सिंह हुड्डा के बीच की टसल चल रही हो लेकिन जनता ही कांग्रेस को चुनाव जीताने का मन बना चुकी है। उसकी अंदरूनी फुट का चुनाव परिणाम पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है जबकि सच्चाई यह थी की जनता ने एक तरफ वोट देने से साफ इनकार कर दिया। चुनावी आंकड़े बताते हैं कि मतगणना वाले दिन दोपहर 3 बजे तक बीजेपी कांग्रेस दोनों राष्ट्रीय पार्टियों के आंकड़े बराबर चल रहे थे। 39 से 40 फीसदी के बीच वोट मिले थे।