जम्मू-कश्मीर में तीन दशक से भी लंबे समय बाद कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस के बीच विधानसभा चुनाव से पहले गठबंधन हुआ है। इसके बाद दोनों ही दल सीट शेयरिंग पर काम कर रहे हैं। इस बीच नेशनल कॉन्फ्रेंस उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला राज्य की गांदरबल विधानसभा सीट से एक बार फिर से चुनाव मैदान में उतरने जा रहे हैं। गांदरबल विधानसभा सीट अब्दुल्ला परिवार के लिए बेहद खास है। क्योंकि यह वहीं सीट है जिसपर उमर अब्दुल्ला के दादा ने विधानसभा का चुनाव लड़ा और मुख्यमंत्री की शपथ ली। इसके बाद उमर के पिता फारूक अब्दुल्ला भी इसी सीट से चुनाव जीते और सीएम की दहलीज तक जा पहुंचे। पिछली बार उमर अब्दुल्ला भी जब जम्मू कश्मीर के सीएम बने थे तो वे गांदरबल सीट से ही विधायक चुने गए थे।
जम्मू कश्मीर की गांदरबल विधानसभा सीट से उमर अब्दुल्ला तीसरी बार चुनाव मैदान में उतरे हैं। उनके पिता फारुक अब्दुल्ला पांच बार राज्य के मुख्यमंत्री बने। हर बार वे गांदरबल सीट से ही चुनाव लड़े थे। इतना ही नहीं उमर के दादा शेख अब्दुल्ला भी गांदरबल सीट से चुनाव जीतकर मुख्यमंत्री बने थे। उमर अब्दुल्ला भी पहले गांदरबल से चुनकर मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाल चुके हैं। इस बार फिर उमर ने अपने लिये गांदरबल सीट को ही चुना है। ऐसे में देखना यह होगा कि कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ने वाली नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला क्या इस बार गांदरबल सीट से चुनाव जीतकर मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंच पाते हैं या नहीं।
- जम्मू-कश्मीर की सियासत में अहम है गांदरबल सीट
- गांदरबल से विधायक ने ली 7 बार सीएम की शपथ
- सभी सात एक ही परिवार के थी
- अब्दुल्ला परिवार के वारिसों ने ली सीएम की शपथ
- दादा, बेटा और इसके बाद पोता
- इस बार भी यह सिलसिला क्या रहेगा बरकरार
- जम्मू-कश्मीर की सियासत का कामयाब अब्दुल्ला परिवार
हालांकि राज्य की सियासत में अब्दुल्ला परिवार के वारिस उमर अब्दुल्ला ने केंद्र शासित प्रदेश के तहत विधानसभा चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान किया था, लेकिन कांग्रेस के साथ सियासी गठबंधन के बाद उमर ने अपने पुराने ऐलान से यू-टर्न ले लिया है। अब गांदरबल विधानसभा सीट से एक बार फिर उमर अब्दुल्ला अपनी किस्मत को आजमाने जा रहे हैं।
अब्दुल्ला परिवार जीता पांच बार गांदरबल में जीता
साल 1962 में जम्मू कश्मीर की गांदरबल विधानसभा सीट अस्तित्व में आई थी। तब से इस सीट पर अब तक करीब 10 बार हुए चुनाव हुए, जिसमें से 5 बार अब्दुल्ला परिवार का ही कब्जा रहा। सात बार इसी परिवार के सदस्यों ने सीएम पद की शपथ ली। चुनावी इतिहास को देखें तो जब-जब इस सीट से अब्दुल्ला परिवार के किसी सदस्य ने जीत हासिल की है उसे मुख्यमंत्री बनने में कामयाबी मिली। यह परंपरा 1977 के विधानसभा चुनाव के दौरान की शुरु हुई थी।
उस समय जुलाई 1977 में विधानसभा चुनाव जीतने बाद उमर के दादा शेख अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर के सीएम बने। इस चुनाव में शेख ने गांदरबल सीट से ही चुनाव जीत हासिल की थी। वे सत्ता के शीर्ष तक पहुंचने में भी कामयाब रहे थे। शेख पहली इसी सीट से विधायक चुने गए थे। इससे पहले शेख अब्दुल्ला विधान परिषद के सदस्य हुआ करते थे। साल 1975 में वे पहली बार मुख्यमंत्री बने थे तो बतौर एमएलसी के उन्होंने सीएम पद की शपथ ली थी। बता दें जम्मू कश्मीर में 1947 से 1965 तक प्रदेश के मुखिया को ही प्रधानमंत्री कहा जाता था। हालांकि 1965 में यहां पर परिवर्तन किया किया गया। इसके बाद से मुखिया को मुख्यमंत्री कहा जाने लगा ।
पहले शेख फिर बेटा बना मुख्यमंत्री
शेख अब्दुल्ला का निधन 1977 में होने के बाद मुख्यमंत्री की कुर्सी उनके बेटे फारूक अब्दुल्ला ने संभाली। वे भी गांदरबल सीट से ही विधायक बने और फिर राज्य के मुख्यमंत्री के पद तक पहुंचे थे। 1983 के विधानसभा चुनाव में भी फारूक अब्दुल्ला ने अपने पिता की इस सीट को ही चुना। जीत हासिल भी की। कांग्रेस उस समय चुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ मैदान में उतरना चाहती थी। लेकिन दोनों के बीच चुनावी समझौता नहीं हुआ। ऐसे में अकेले ही चुनाव लड़ना पड़ा। फारूक अब्दुल्ला के नेतृत्व में नेशनल कॉन्फ्रेंस को विजयी मिली। ऐसे में फारुक अब्दुल्ला गांदरबल सीट से ही विजयी होकर दूसरी बार मजम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री बने थे।
कांग्रेस ने उठाया था कभी नेशनल कॉन्फ्रेंस के आपसी विवाद का सियासी लाभ
हालांकि करीब 7 महीने तक मुख्यमंत्री के पद पर बने रहने के बाद बड़ा सियासी उलटफेर हुआ। उस समय केंद्र में राजीव गांधी की कांग्रेस सरकार थी। जिसने नेशनल कॉन्फ्रेंस में जारी अंदरुनी विवाद का लाभ उठाया। नेशनल कॉन्फ्रेंस के कई विधायकों को तोड़कर फारूक अब्दुल्ला सरकार अल्पमत में ला दिया। ऐसे में अब्दुल्ला को इस्तीफा देना पड़ा। फिर फारूक अब्दुल्ला के सगे बहनोई गुलाम मोहम्मद शाह ने मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली। इस दौरान अवामी नेशनल कॉन्फ्रेंस सरकार जम्मू कश्मीर में अस्तित्व में आ गई। हालांकि शाह सरकार ज्यादा समय तक नहीं चल सकी। राज्य में पहले राज्यपाल और फिर राष्ट्रपति शासन लगाया गया। इसके बाद फारूक अब्दुल्ला सरकार की वापसी हुई।
तब किये था फारूक ने पांच साल पूरे
फारूक अब्दुल्ला सातवीं विधानसभा में दो बार जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री बनने में कामयाब रहे। साल 1987 में हुए विवादित चुनाव में फारूक अब्दुल्ला की पार्टी नेशनल कॉफ्रेन्स कांग्रेस के साथ चुनाव में विजयी हुई। फारुक अब्दुल्ला फिर से राज्य के सीएम बने। इस बार भी वे गांदरबल सीट से ही विधायक चुने गए थे। हालांकि तब राज्य में आकंतवाद पनप रहा था। इसके बाद जनवरी 1990 में फारूक अब्दुल्ला की सरकार को अपदस्थ कर दिया गया। राज्यपाल शासन के बाद जम्मू कश्मीर में 6 साल से अधिक समय तक राष्ट्रपति शासन लगा रहा इसके बाद 1996 में फिर से विधानसभा के चुनाव कराये गये। 1996 के विधानसभा चुनाव में फारूक अब्दुल्ला एक बार फिर गांदरबल सीट से चुनाव मैदान में उतरे और उनकी पार्टी ने बहुमत हासिल किया। फारूक अब्दुल्ला पांचवीं और आखरी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने। इस बार फारुक अब्दुल्ला ने पांच का अपना कार्यकाल पूरा किया।
उमर अब्दुल्ला पहले हारे फिर गांदरबल से जीते और CM बने
फारूक अब्दुल्ला के बेटे उमर अब्दुल्ला ने 1998 में 28 साल की उम्र में लोकसभा चुनाव लड़ा। वे चुनाव में विजयी भी रहे। इसके बाद साल 1999 में उमर फिर से सांसद चुने गए। जुलाई 2002 में उन्हें केंद्रीय मंत्री बनाया गया। हालांकि वे ज्यादा समय तक केंद्र की सियासत में नहीं रहे और दिसंबर 2002 को केन्द्रीय मंत्री पद से इस्तीफा देकर जम्मू कश्मीर की सियासत में लौट आए। 23 जून 2002 को उमर को नेशनल कॉन्फ्रेंस का अध्यक्ष बनाया गया। इसी साल 2002 के अक्टूबर-नवंबर में हुए विधानसभा चुनाव में उमर ने अपने दादा और पिता की राह पर चलते हुए गांदरबल विधानसभा सीट से ही चुनाव लड़ा, लेकिन वे चुनाव में हार गए। इतना ही नहीं पार्टी भी सत्ता से दूर हो गई। इसके बाद साल 2008 के विधानसभा चुनाव में उतर के नेतृत्व में नेशनल कॉन्फ्रेंस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई। उमर अब्दुल्ला 5 जनवरी 2009 को राज्य के मुख्यमंत्री बने। उस समय उन्होंने गांदरबल से ही विधानसभा का चुनाव लड़ा था और जीत कर मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे।