बांग्लादेश में आरक्षण विरोधी आंदोलन ने जब जोर पकड़ा तो प्रधानमंत्री शेख हसीना का तख्ता पलट हो गया। अब वे पीएम पद से इस्तीफा देकर भारत की शरण में हैं। बांग्लादेश में तख्ता पलट के बाद अराजकता की स्थिति अब भी बनी हुई है। वहां हिंदू परिवारों और मंदिरों पर हमले का सिलसिला अब भी जारी है।
- बंद नहीं हुए बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले
- ठाकुरगांव के देवीगंज में हिंदुओं के घरों पर हमला
- हिंदुओं के 15 घरों को लगाई आग
- बांग्लादेश के हिन्दु समुदाय में खौफ
हालांकि भारत सरकार की ओर से कई बार बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे हमले को लेकर विरोध जताया गया। इस पर चिंता भी जताई गई। इसके बाद भी स्थिति में बदलाव नजर नहीं आया। हिंसा के खिलाफ जब बांग्लादेशी हिंदु सड़क पर उतरे तो वहां की अंतरिम सरकार ने जरुर उन्हें सुरक्षा प्रदान करने का भरोसा दिलाया था, लेकिन आज भी हिन्दुओं पर बांग्लादेश में हमले बंद नहीं हुए हैं।
बांग्लादेश में हिन्दुओं पर एक और बड़ा हमला हुआ है। ताजा मामला ठाकुरगंज के देवीगंज का है। जहां हिन्दुओं के घरों पर हमला किया गया। करीब 15 घरों में आगजनी की गई है। इस हमले से बांग्लादेश में हिंदु समुदाय खौफ में है।
बांग्लादेश में हिन्दुओं पर हमले का पुराना इतिहास
बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले जारी है। बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे हमले नये नहीं हैं। जब से पाकिस्तान से यह देश स्वाधीन हुआ है तब से हिंदुओं पर हमले होते रहे हैं। पाकिस्तान से जब बांग्लादेश स्वाधीन हुआ थाा तब वहां 30 प्रतिशत हिंदू आबादी थी। अब महज 8 प्रतिशत हिन्दु आबादी शेष बची है।
हिंदुओं पर अत्याचार बांग्लादेश में हमेशा से होते रहे हैं। कुछ कट्टर पंथी लोग वहां हिंदुओं को अक्सर अपने निशाने पर रखते हैं। 1947 में जब भारत का विभाजन हुआ था उस वक्त भी खूब सांप्रदायिक दंगे हुए थे। बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हमले की सच्चाई यह है कि कई राजनीतिक नेताओं ने अपने अपने लाभ के लिए धर्म का उपयोग किया और इस वजह से ही बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले बढ़ते गये।
शासकों ने फैलाई हिंदुओं के खिलाफ नफरत
कहा जाता है कि जब बांग्लादेश पाकिस्तान से अलग हुआ तब वह एक सेक्यूलर देश माना जाता था। जहां राज्य का उसका अपना कोई धर्म नहीं था। लेकिन 1980 के दशक में इस देश ने इस्लाम को देश का धर्म बना दिया। इसके साथ ही बिस्मिल्लाह उर रहमान उर रहीम शब्द को भी संविधान में शामिल कर लिया गया। यह जिया उर रहमान और जनरल हुसैन मुहम्मद इरशाद के कार्यकाल में हुआ। जिया उर रहमान और जनरल हुसैन मुहम्मद इरशाद दोनों ने सत्ता में बने रहने के लिए इस्लाम धर्म को मानने वालों को यह दिखाया कि वे ही उनके शुभचिंतक हैं। इसलिए हिंदुओं और दूसरे अन्य धर्म को मानने वालों के खिलाफ जमकर नफरत फैलाई। मस्जिदों का निर्माण किया गया। मदरसे अस्तित्व में आए, लेकिन इस दौर में शासकों ने कभी भी वहां शिक्षा, स्वास्थ्य और विकास के कार्यों पर गौर नहीं किया।
मुल्ला और मौलवियों ने किया मुस्लिम बच्चों का ब्रेन वाॅश
मदरसों में मुल्ला और मौलवियों ने मुस्लिम बच्चों का ब्रेन वाॅश किया। मुस्लिमों को कट्टपपंथी बनाने का काम बड़े पैमाने पर किया गया। बांग्लादेश में किसी भी सरकार ने इसे रोकने का प्रयास नहीं किया। क्योंकि वे मुस्लिमों के हितैषी बनने से ज्यादा दिनों तक सत्ता में रह सकती है।
मदरसों में मौलवी ने मासूम बच्चों को इस्लाम के साथ उन्हें कट्टरवाद सिखाया। बच्चों का ब्रेन वाॅश किया गया। जब यही बच्चे समाज का हिस्सा बने तो समाज में हिंदू विरोधी भावना दिखाई देना कोई बड़ी बात नहीं। मौलवियों के ब्रेन वाॅश से बच्चे कट्टरपंथी बन गए। सरकारों की इन बच्चों पर कोई रोक टीक नहीं थी। बांग्लादेश ने जैसे ही खुद को इस्लामिक स्टेट घोषित किया वहां दूसरे धर्म के लोग दूसरे दर्जे के नागरिक बन गये। दरअसल यह स्थिति ही हिंदुओं पर होने वाले हमले के लिए जिम्मेदार है।