उत्तर प्रदेश में नजुल बिल को लेकर बीजेपी में दो फाड़ नजर आ रही है। संजय निषाद हों या फिर अनुप्रिया पटेल। दोनों ने एक बार फिर यूपी की बेलगाम नौकरशाही पर हमला किया है। सीएम योगी आदित्य का नाम नहीं लिया, लेकिन निशाने पर योगी आदित्यनाथ ही हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि बिल में इतनी गड़बड़ी थी तो उसे विधान परिषद में पेश क्यों किया गया। अब नजूल संपत्ति विधेयक को लेकर यूपी में
सियासी घमासान मच गया है। सत्ताधारी पार्टी बीजेपी में ही कई नेता इसका विरोध कर रहे हैं। बीजेपी के सहयोगी दलों ने भी विधेयक का विरोध किया है। ऐसे में विधानसभा से पारित नजूल संपत्ति विधेयक पर विधान परिषद में रोक दिया गया और इसे सेलेक्ट कमेटी को भेजा गया है। लेकिन इस पर सियासत आखिर क्यों हो रही है यह जानना भी जरूरी है।
- आर्थिक ही नहीं राजनीतिक मसला भी है
- नजूल बिल आर्थिक के साथ सियासत से भी जुड़ा है
- बीजेपी विधायक कह रहे हैं पीएम मोदी गरीबों को आवास दे रहे हैं
- हम किसी का घर कैसे उजाड़ सकते है
- नजूल की जमीन से हो जाते लाखों लोग बेघर
- जिन लोगों को बेदखल किया जाता वे भाजपा के खिलाफ हो जाते
- 2027 में यूपी विधानसभा चुनाव भी हैं
- बुलडोजर चलता तो बीजेपी को फिर हो सकता था बड़ा नुकसान
- राज घरानों से जो ज़मीन छीनी जमीन ही है नजूल की ज़मीन
- जमीन का मालिकाना हक किसी के पास नहीं वो है नजूल जमीन
- प्रयागराज से लेकर राजधानी लखनऊ और मेरठ तक में हजारों एकड़ जमीन नजूल
- नजूल की जमीन पर लोग कई साल से घर बना कर रहते आ रहे हैं खेती कर रहे हैं
- नया काननू बनता तो लाखों लोग हो जाते यूपी में बेघर
- नया कानून बनने के बाद लीज का नवीनीकरण नहीं होता
- लीज की पूरी होने के बाद संबंधित को जमीन से हटना पड़ता
- नजूल की जमीन लीज पर देने की व्यवस्था खत्म हो जाती
- अयोध्या जैसे कई शहरों में लाखों लोग नजूल की जमीन पर ही रहते हैं
- नजूल की जमीन पर बना है इलाहाबाद हाई कोर्ट भवन
बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष का दावा नहीं बनाई थी बिल पर आपसी सहमती
यूपी बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी का कहना है की नजूल बिल को लेकर आपसी सहमति नहीं बनाई गई थी। उन्होंने कहा कि बिल को लेकर उन्हें जानकारी नहीं है लेकिन विधान परिषद में लोगों के सुझाव आए थे। मुख्यमंत्री से भी लोगों ने और विधायकों बात की। दोनों डिप्टी ने भी बात की थी। इसके बाद यह बिल प्रवर समिति को भेजा गया, यह एक सामान्य प्रक्रिया है। बहुत बार ऐसा होता है की कोई बिल विधानसभा में पास हो जाए और विधान परिषद में उस पर आपत्ति हो तो आपत्ति का समाधान करने के लिए लोकतांत्रिक प्रक्रिया अपनाई जाती है। इसी रूप में इसे देखा जाए।
माना जा रहा है कि योगी के खिलाफ बीजेपी के मुखिया ने बड़ी बात कह दी। बिल को लेकर आम सहमति नहीं बनाई गई। लिहाजा बिल को सेलेक्ट कमेटी को भेजा गया है। अब यह बीजेपी के जारी की नतीजा नहीं तो और क्या है। वहीं बिल को लेकर डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य का कहना है कि नजुल भूमि का बिल विधानसभा से पास होकर विधान परिषद में आया है। वहां से प्रवर समिति को भेजा गया है। अब प्रवर समिति उस पर विचार करके जो निर्णय लेगी उसकी विधानसभा अध्यक्ष और मुख्यमंत्री को दी जाएगी।, इस पर सार्वजनिक चर्चा नहीं होती।
डैमेज कंट्रोल में जुटी बीजेपी
माना जा रहा है कि एक बार फिर भाजपा डैमेज कंट्रोल में जुट गई है। दावा यही है कि सब कुछ ठीक है योगी और मौर्य के बीच मतभेद नहीं है। भाजपा विधायक सिद्धार्थ नाथ सिंह का कहना है कि मंत्री जी के माध्यम से यह निर्णय हुआ है कि इसके केशव प्रसाद मौर्य जो विधान परिषद में लीडर हैं वे बिल को पेश करेंगे। इससे साफ होता है कि दोनों के बीच कोई अनबन नहीं है। सिद्धार्थ नाथ सिंह ने कहा कि उसके बाद चर्चा के साथ जब हमारे प्रदेश अध्यक्ष कुछ कहेंगे तो उसकी उनकी बात मानी जाएगी। विधेयक को सेलेक्ट कमेटी को भेजा गया। यह प्रजातांत्रिक प्रक्रिया है। पार्टी और सरकार ने बिल का निर्णय लिया है यह बहुत बड़ी बात है।
सीएम योगी की बात के निकाले जा रहे अलग अलग अर्थ
दरअसल नजूल बिल को लेकर बीजेपी में दो फाड़ नजर आ रही है। अब सवाल यही है कि सीएम योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा में जो कहा वो किसके लिए कहा था। बता दे योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा में कहा था कि सामान्य लोगों का जीना हराम करते हैं। मेरा दायित्व बनता है, मैं यहां नौकरी करने नहीं आया हूं। कतई नहीं आया। मैं यहां पर इस बात के लिए आया हूं अगर वह करेगा तो भुगतेगा भी वहीं। इसीलिए मैं यहां पर आया हूं कि हम लोग उससे लड़ेंगे। यह लड़ाई हमारी सामान्य लड़ाई नहीं है। यह प्रतिष्ठा की लड़ाई भी नहीं है। योगी आदित्यनाथ ने कहा कि उन्हें प्रतिष्ठा प्राप्त करनी होती तो इससे ज्यादा प्रतिष्ठा में अपने मठ में हासिल कर लेते।
अखिलेश ने फिर साधा बीजेपी और योगी आदित्यनाथ पर निशाना
सीएम योगी आदित्यनाथ के इसी बयान को लेकर अब समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने सोशल मीडिया पर लिखा कि दिल्ली का गुस्सा लखनऊ में क्यों उतार रहे हैं। सवाल यह है कि उनकी प्रतिष्ठा को ठेस किसने पहुंचाई। कह रहे हैं सामने वालों से पर बता रहे हैं पीछे वालों को। कोई पीछे है। अखिलेश ने यह सवाल सोशल मीडिया पर किया है। सीएम योगी आदित्यनाथ के गुस्से पर प्रहार करते हुए अखिलेश ने निशाना साधा है। बता दें इससे पहले अखिलेश यादव यूपी बीजेपी को लेकर दो बड़े बयान दे चुके हैं। अखिलेश ने कहा था कि कोई किसी को नमस्कार नहीं करता। कोई किसी को देख नहीं रहा है। जो अपने आप को बहुत ताकतवर समझ रहे हैं और कहते थे बहुत ताकतवर कहते थे, लेकिन जिसने हराया उसको नहीं हटा पा रहे हैं। वहीं अखिलेश ने इसके बाद कहा यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य जी तो मोहरा हैं। दिल्ली के वाई-फाई के पासवर्ड हैं। अगर किसी से दिल्ली वाले मिलते हैं, तो लखनऊ वाले भी तो किसी से मिल लेंगे। ऐसे कैसे सरकार चलेगी।
आर्थिक ही नहीं राजनीतिक मसला भी है
नजूल बिल आर्थिक मुद्दे के साथ सियासत से भी जुड़ा है। मतलब साफ है कि वोट का हिसाब किताब भी विधायकों और नेताओं ने किया है। विधानसभा में बीजेपी विधायक भी यह कह रहे हैं पीएम मोदी गरीबों को आवास दे रहे हैं,तो हम किसी का घर कैसे उजाड़ सकते है। दरअसल नजूल की जमीन से जिन लोगों को बेदखल किया जाता वे भाजपा के खिलाफ हो जाते। 2027 में यूपी विधानसभा चुनाव भी हैं, ऐसे में बुलडोजर चलता तो बीजेपी को फिर बड़ा नुकसान होने की आशंका नजर आ रही थी।
आखिर क्यों हो रहा नजूल बिल का विरोध ?
उत्तरप्रदेश विधानसभा से विधानसभा परिषद में पहुंचे नजूल जमीन वाले बिल में अखिर ऐसा क्या है कि इस पर हंगामा थम नहीं रहा है। दरअसल अंग्रेजों के शासन में राज घरानों से जो ज़मीन छीनी वो वो नजूल ज़मीन ही। उस समय ब्रिटिश सरकार के खिलाफ जिन लोगों ने लड़ाई लड़ी, उनकी जमीनों को जब्त कर लिया गया था, अब यह जमीन भी नजूल जमीन है। यानी कुल मिलाकर यूपी में जिस जमीन का मालिकाना हक किसी के पास नहीं है वो जमीन नजूल जमीन मानी जाता है। इसमें ग्रामीण इलाक और शहरी इलाकों में दो तरह की जमीन होती है। 15 साल से लेकर करीब 99 साल तक की किसी को इस जमीन को लीज पर देने का नियम रहा है। इस लीज के बदले लोगों से तय किराया वसूला जाता है। यूपी के प्रयागराज से लेकर राजधानी लखनऊ और मेरठ तक में हजारों एकड़ जमीन नजूल की है। जिस पर लोग कई साल से अपना घर बना कर रहते आ रहे हैं, खेती कर रहे हैं।
नया काननू बनता तो लाखों लोग हो जाते यूपी में बेघर
लेकिन यूपी में अब नजूल पर नया कानून बनने के बाद लीज का नवीनीकरण नहीं होता। लीज की पूरी होने के बाद संबंधित को जमीन से हटना पड़ता। भले ही लोग कई साल से उस जमीन पर रहते आ रहे हों।
या कई साल से खेती करते हों, लीज खत्म होते ही उन्हें जमीन से हटना पड़ता। इतना ही नहीं बिल पारित होने के बाद नजूल की जमीन भी किसी व्यक्ति और संस्था को लीज पर देने की व्यवस्था खत्म हो जाती।
बिल में नजूल की जमीन का उपयोग केवल सरकारी काम के लिए ही किये जाने का प्रावधान किया गया था। नया कानून बनने के बाद यूपी में लाखों लोग बेघर हो जाते। अयोध्या जैसे कई शहरों में हजारों लोग नजूल की जमीन पर ही रहते हैं या फिर अपनी दुकान का संचालन करते हैं। इतना हीह नहीं प्रयागराज में इलाहाबाद हाई कोर्ट से लेकर राज्य लोक सेवा आयोग का भवन तक नजूल की जमीन पर बना है।
हालांकि राजस्व के साथ वन विभाग और सिंचाई विभाग की जमीन को नजूल के दायरे से बाहर रखा है। वहीं केंद्र सरकार के रक्षा और डाक के साथ रेलवे और टेलिग्राफ विभाग की जमीन भी नजूल दायरे से बाहर है। बता दें बसपा सरकार में मायावती के मुख्यमंत्री रहते हुए नजूल के कुछ प्लाटस को फ्री होल्ड किया थे।