लोकसभा चुनाव का रण अब अंतिम चरण में पहुंच गया है। 1 जून को आठ राज्यों की 57 लोकसभा सीटों पर वोटिंग होगी। इस आखिरी चरण में कुल 904 उम्मीदवार चुनावी मैदान में खड़े हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वाराणसी लोकसभा सीट से लेकर पश्चिम बंगाल में टीएमसी की मुखिया ओर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक की डायमंड हार्बर सीट पर दिलचस्प मुकाबला नजर आ रहा है ।
अंतिम रण में नजर काशी से डायमंड हार्बर सीट तक
1 जून को आठ राज्यों की 57 लोकसभा सीटों पर होगी वोटिंग
57 सीट चुनावी मैदान में 904 उम्मीदवार
क्या बीजेपी तोड़ पाएगी पिछला रिकॉर्ड
पिछली बार 57 में से 32 सीट थी एनडीए के पास
इसके अतिरिक्त राजद सुप्रीमो और बिहार के पूर्व सीएम लालू प्रसाद यादव की बेटी निशा भारती का फैसला भी एक जून के सातवें चरण में होने वाला है। निशा पाटलिपुत्र लोकसभा सीट से मैदान में हैं। पिछली लोकसभा 2019 के चुनावी नदियों की बात की जाए तो इन्हीं 57 सीटों में से बीजेपी और एनडीए का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा था। राजनीतिक पंडित कहते हैं कि उसे आखिरी चरण में भी तब बीजेपी और एनडीए ने एक निर्णायक निर्णायक बड़ा हासिल कर ली थी। पिछली बार के चुनाव में 57 सीटों में से बीजेपी ने अपने दम पर 25 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की थी। वहीं अगर एनडीए के आंकड़े पर और किया जाए तो यह आंकड़ा लगभग 32 लोकसभा सीटों पर पहुंचा था। इन्हीं 57 सीटों में यूपीए को 2019 में मात्र 9 लोकसभा सीट पर ही संतोष करना पड़ा था बाकी दूसरे दलों के खाते में 14 सीट गई थी।
इस बार बदली हुए हैं जमीनी हालात और स्थिति
हालांकि पिछली बार 2019 में बीजेपी और एनडीए का प्रदर्शन काफी अच्छा था लेकिन इस बार जमीनी हालात और स्थिति बदली हुई नजर आ रही है। उदाहरण के लिए पंजाब में इस बार बीजेपी और अकाली दल का कोई गठबंधन इस बार चुनाव में नहीं हुआ है। वही पंजाब में क्योंकि आम आदमी पार्टी कि अभी सरकार है। ऐसे में माना जा रहा है कि उसकी सीटों की संख्या पिछली बार से अलग होगी।
यूपी की 13 में से 11 सीट पर बीजेपी का कब्जा
वही उत्तर प्रदेश की बात की जाए तो 80 सीटों वाले किस राज्य में पिछली 2019 के लोकसभा चुनाव में इन 13 सीटों में से बीजेपी ने 9 सीट पर जीत हासिल की थी। जबकि दो सीट उसी के सहयोगी दल ने जीती थी।ऐसे में उत्तर प्रदेश में इस आखिरी चरण में 13 सीटों पर मतदान होना है। 11 सीटों पर एनडीए का कब्जा था। यानी एक तरह से क्लीन स्वीप की स्थिति थी। वैसे उत्तर प्रदेश में इस बार एक बड़ा परिवर्तन देखने को मिला है कांग्रेस और समाजवादी पार्टी मिलकर लोकसभा का चुनाव लड़ी हैंl वहीं बहुजन समाज पार्टी अकेले अपने दम पर चुनाव मैदान में उतरी। बसपा ने कहीं किसी दूसरी पार्टी के साथ गठबंधन नहीं किया। इसी आखिरी चरण में ओबीसी मतदाताओं के लिए भी सत्ता के करीब और सत्ता को चुनने का रास्ता नजर आ रहा है। इसके अलावा बसपा प्रमुख मायावती के दलित मतदाता में कैसे सेंध की जाए इसकी भी पूरी कवायद बीजेपी और एनडीए के साथ इंडिया गठबंधन यानी सपा कांग्रेस ने की है और इससे बड़ी बात यह है कि उत्तर प्रदेश की सभी 13 पूर्वांचल वाली सीट हैं जिन पर आखिरी चरण में मतदाताओं की कतर लगेगी। राजनीति के जानकारी कहते हैं कि यहां पर भाजपा के लिए भी इस बार चुनौतियां कम नहीं है।
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