लोकसभा चुनाव का ऐलान हो चुका है। चात चरणों में मतदान की प्रक्रिया पूरी होगी। इस बार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाले एनडीए और विपक्षी INDIA गठबंधन के बीच ही मुख्य मुकाबला होने वाला है। लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एनडीए के साथ बीजेपी के लिए एक बड़ा और विश्वसनीय चेहरा बने रहेंगे। इसके अतिरिक्त भी इस चुनाव में कई चेहरे हैं जो अपना असर डालते नजर आएंग। इस सूची में कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी के अलावा ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल में तो अरविंद केजरीवाल दिल्ली से लेकर पंजाब तक छाए रहेंगे। वहीं महाराष्ट्र और ओडिशा से लेकर दक्षिण भारत में भी कई ऐसे छत्रप नेता शामिल जो अपना अपना प्रभाव इन चुनावों पर डालेंगे।
- NDA और I.N.D.I.A गठबंधन के बीच होगा मुख्य मुकाबला
- पीएम मोदी देंगे एउभए की ओर चुनाव में प्रचार में धार
- क्या इंडिया गठबंधन का राहुल गांधी करेंगे उद्धार
- एकला चलो की नीति पर चल रहीं ममता बनर्जी
- दक्षिण भारत के छत्रप डालेंगे चुनावों पर असर
नरेन्द्र मोदी के आसपास घूमता चुनावी चक्र
लोकसभा चुनाव 2024 में सबसे अधिक किसी की चर्चा है तो वो नाम पीएम नरेन्द्र मोदी का है। बीजेपी और एनडीए ही हीं विपक्षी दल भी उनके इर्द-गिर्द अपना अभियान चलाते नजर आते हैं। बीजपी जहां नरेन्द्र मोदी में समाहित है तो विपक्षी दल के नेता उनके प्रति अपनी नापसंदगी से परेशान हैं। वे जो भी प्रचार प्रसार कर रहे हैं उसमें आर्थिक विकास के साथ देश और विदेश में सशक्त राष्ट्रवाद ही नहीं हिंदुत्व और सांस्कृतिक पुनरुत्थान न केवल बीजेपी बल्कि विपक्षी दल के लिए भी प्रमुख कैंपने का विषय बन गया है। विपक्षी दल इन मापदंडों पर उनकी आलोचना करते नजर आते हैं।
राहुल का देर से सक्रिय होना, पड़ सकता है कांग्रेस भारी
वैसे राहुल गांधी बीजेपी के मुख्य प्रतिद्वंद्वी माने जाते हैं। लेकिन उनकी अपनी भी कई चुनौतियां हैं। यहां तक कि उनके समर्थकों के लिए उनका वादा अधूरा है। दरअसल चुनाव में कांग्रेस का वास्तविक बॉस होना और यह बड़ा दावा करते रहना कि वैधानिक जिम्मेदारियां दूसरों की हैं राहुल गांधी के काम नहीं आया। वहीं लंबे समय तक गठबंधन से अलगाव की स्थिति के बाद सक्रियता का भी कोई खास परिणाम नहीं निकला।
पश्चिम बंगाल में ममता को मुस्लिम वोटर्स से उम्मीद
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी एकला चलो की नीति पर चल रही हैंं। ममता 2019 में तब झटका लगा था जब बीजेपी ने बंगाल में 18 लोकसभा सीटें छीन लीं थी। हालांकि 2022 में हुए विधानसभा चुनावों के दौरान टीएमसी को पश्चिम बंगाल में भारी जीत मिली। लेकिन पश्चिम बंगाल में राजनीति हमेशा की तरह अशांतिपूर्ण और उग्र के साथ हिंसा से ग्रस्त रही है। संदेशखाली की में टीएमसी की ज्यादती और पीएम की अपील से बीजेपी को मदद मिलेगी ऐसी उम्मीद बीजेपी का है।
राजनीति के मजबूत छत्रप हैं नवीन पटनायक
ओडिया में नवीन पटनायक साल 2000 से सीएम की कुर्सी पर डटे हुए हैं। वे अभी भी राजनीतिक रूप से खासे मजबूत राज्य क्षत्रप माने जाते हैं। यदि इस बार बीजेपी के साथ बातचीत सफल हो गई है, तो ओडिशा में लोकसभा ही नहीं विधानसभा चुनाव में भी एनडीए के पास जाने की संभावना है।
आंध्र में जगन रेड्डी
आंध्र के विधानसभा चुनावों में जगन रेड्डी ने भारी बहुमत से जीत हासिल की थी। 2019 में लोकसभा चुनावों में राज्य में जीत हासिल की थी। लेकिन वाईएसआर के बेटे जिन्होंने शासन किया जैसा कि कुछ स्थानीय टिप्पणीकारों ने कहा अपने मूल रायलसीमा के अधिपति की तरह, इस बार एक बहुत ही कठिन चुनौती का सामना कर रहे हैं। पवन कल्याण की जन सेना पार्टी के साथ गठबंधन में 2019 के चुनावी अपमान का बदला लेने के लिए जगन को सत्ता विरोधी लहर और मजबूत टीडीपी का डटकर सामना किया। लेकिन बीजेपी ने चंद्रबाबू नायडू से हाथ मिला लिया है।
पंजाब और दिल्ली में केजरीवाल
दिल्ली के सीएम और आम आदमी पार्टी संयोजक अरविंद केजरीवाल को इस बार लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की सीट बढ़ने की संभावना नजर आ रही है। इसके लिए पंजाब को प्रमुख कारक मना जा सकता है। जहां उनकी पार्टी ने स्वयं को मजबूत किया है। दिल्ली से सीट जीत ली तो यह आप के लिए बोनस और बूस्टर होंगी।
बिहार यूपी में तेजस्वी और अखिलेश
उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव और बिहार में तेजस्वी यादव दोनों ही चेहरे मुस्लिम के साथ यादव मतदाताओं के प्रति निष्ठा रखते हैं। यूपी के साथ बिहार जैसे बड़े राज्यों में देश के कम से कम एक तिहाई मतदाता रहते हैं। लोकसभा चुनाव में इन दोनों राज्यों के महत्व को मक नहीं आंका जा सकता।
महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे के साथ शरद पवार
इस बार लोकसभा चुनाव में कमजोर पार्टियों वाले दो क्षत्रप महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे के साथ शरद पवार बीजेपी के सामने दीवार बनकर खड़े हैं। वे और कांग्रेस के साथ महाराष्ट्र में होने वाले नुकसान से बचने के लिए बीजेपी के 400 पार के दृढ़ संकल्प के बीच रास्ते में खड़े हो गए हैं। उद्धव को शिवसैनिकों की सहानुभूति पर भरोसा है जो अभी भी बाला साहब ठाकरे की कसम खाते हैं। लेकिन मुंबई के बाहर उन पर हिंदुत्व के साथ विश्वासघात का जो आरोप लगाता है वो नुकसान पहुंचा सकता है।