बिहार के चंपारण से ताल्लुक रखने वाले फिल्म निर्माता निर्देशक प्रकाश झा किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं। फिल्म इंडस्ट्री में तो इन्होंने खूब पहचान बनाई लेकिन राजनीति में कदम रखा तो सफलता नहीं मिली। 27 फरवरी को प्रकाश झा का जन्मदिन है। आज इसके मौके पर उनके पोलिटिकल सफर पर ही नजर डालते हैं।
- प्रकाश झा की पहली फिल्म थी हिप हिप हुर्रे
- गंगाजल से लेकर राजनीति तक कई फिल्म बनाईं
- रुढ़िवाद पर प्रहार थी लिपस्टिक अंडर माय बुर्का फिल्म
- प्रकाश झा, सफल फिल्म मेकर असफल नेता
- राजनीति में भी उतरे प्रकाश झा
- प्रकाश झा ने तीन बार लड़ा लोकसभा का चुनाव,तीनों हारे
- 2004 को पहली बार चंपारण से चुनाव लड़ा
- 2009 में पश्चिमी चंपारण से लोजश के टिकट पर चुनाव लड़ा
- 2014 में जेडीयू के टिकट पर बेतिया सीट से चुनाव लड़ा
प्रकाश झा ने साल 1984 में रिलीज हुई ‘हिप हिप हुर्रे’ का निर्देशन किया यह उनकी पहली फिल्म थी। उसके बाद उन्होंने कई बेहतरीन फिल्में पर्दे पर पेश की। साल 2003 में फिल्म ‘गंगाजल’ से लेकर 2010 में फिल्म ‘राजनीति’ समेत ऐसे और भी कई नाम हैं। जिन्हें प्रकाश झा की बेहतरीन फिल्मों में शुमार किया जाता है।
2004 को पहली बार चंपारण से चुनाव लड़ा
प्रकाश झा ने ना सिर्फ ‘राजनीति’ के नाम से फिल्म बनाई, बल्कि वो खुद अपना हाथ भी राजनीति में आज़मा चुके हैं। 72 साल के प्रकाश झा ने तीन बार लोकसभा का चुनाव लड़ा और तीनों बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा। साल 2004 में पहली बार चंपारण से ही चुनाव लड़ा, लेकिन वे हार गए। इसके बाद साल 2009 में उन्होंने पश्चिमी चंपारण सीट से लोक जनशक्ति पार्टी की तरफ से चुनाव लड़ा फिर भी उन्हें हार ही मिली। प्रकाश झा साल 2014 में जेडीयू के टिकट पर बिहार की बेतिया सीट से चुनाव लड़ा और इस बार भी नतीजे पिछले दो बार की तरह ही रहे। यानी तीन के तीन बार उन्हें शिकस्त मिली। प्रकाश झा के घर वाले चाहते थे कि वो UPSC का एक्जााम दें और IAS बनें लेकिन प्रकाश झा ने इससे बचने के लिए ग्रेजुएशन की पढ़ाई बीच में छोड़ दी, यह सोचकर की अगर ग्रेजुएशन ही नहीं करेंगे तो UPSC होगी ही नहीं।
भोपाल की 4 महिलाओं पर बनाई फिल्म ‘लिपस्टिक अंडर माय बुर्का’
प्रकाश झा की फिल्म लिपस्टिक अंडर माय बुर्का की कहानी भोपाल की एक ही कॉलेानी में रहने वाली चार महिलाओं की है। जिनमें ऊषा यानी रत्ना पाठक शाह, शिरीन यानी कोंकणा सेन, लीला यानी अहाना कुमरा और रिहाना यानी प्लाबिता बोरठाकुर की ये कहानी है। ये चारों खुशी की तलाश में रूढ़िवादी समाज से मुफ्त होने के लिए संघर्ष करती नजर आती है। बता दें इस फिल्म की कहानी में रुढ़िवादी समाज में महिलाओं के साथ होने वाले रूढ़िवादी व्यवहार पर एक बड़ा कटाक्ष किया गया है। फिल्म की कहानी अलंकृता श्रीवास्तव ने लिखी है उनका निर्देशन भी है। जबकि प्रकाश झा ने इसे निर्मित किया। फिल्म में रत्ना पाठक के साथ कोंकणा सेन शर्मा ही नहीं अहाना कुमरा और प्लाबिता बोरठाकुर भी अहम किरदार में नजर आती हैं। हालांकि इनके अलावा फिल्म में सुशांत सिंह और सोनल झा के साथ विक्रांत मैसी और शशांक अरोड़ा ही नहीं वैभव तत्ववादी और जगत सिंह सोलंकी हैं।