बिहार में मची राजनीतिक उठापटक के बीच पूरे देश की नजर सीएम नीतीश कुमार के अगले कदम पर है। लेकिन जनता यह समझ नहीं पा रही है कि आखिर नीतीश कुमार ने पाला बदलने का मन बनाया तो बनाया क्यों। कुछ दिन पहले तक जेडीयू और आरजेडी गठबंधन में सब कुछ ठीक.ठाक था। 23 जनवरी को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती पर सीएम नीतीश कुमार और डिप्टी सीएम तेजस्वी प्रसाद यादव एक कार्यक्रम में शामिल हुए। जिसमें दोनों एक दूसरे से खुलकर बात कर रहे थे। दोनों के हाव भाव से ऐसा महसूस नहीं हो रहा था कि चार दिन बाद बिहार की राजनीति में एक सियासी तूफान आने वाला है। इसके बाद बिहार के पूर्व सीएम स्वर्गीय कर्पूरी ठाकुर की 100वीं जयंती के कार्यक्रम में सीएम नीतीश कुमार ने जिस तरह से परिवारवाद पर हमला किया उससे बिहार की राजनीति गरमा गई। सियासी तुफान के बीच सीएम नीतीश कुमार ने कहा कि कर्पूरी ठाकुर के पद चिन्ह् पर चलते हुए हमने आज तक अपने किसी एक परिवार को आगे नहीं बढ़ाया। अब आरजेडी और जेडीयू गठबंधन में दरार खाई में बदल गई है। बिहार में सियासी भूचाल के बीच अब जोड़ तोड़ की कोशिशें भी शुरू हो गई हैं। नीतीश के बिना सरकार बनाने के लिए महागठबंधन को आठ विधायकों के समर्थन की जरूरत है और आरजेडभ् सुप्रीमो लालू यादव भी एक्टिव हो गए हैं। वहीं जेडीयू की महागठबंधन छोड़कर बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए में एंट्री तय बताई जा रही है। हालांकि इसे लेकर अभी औपचारिक ऐलान होना बाकी है लेकिन खबर है कि नीतीश कुमार महागठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर 28 जनवरी को एनडीए सरकार के मुख्यमंत्री के रूप में पद एवं गोपनीयता की शपथ ले सकते हैं।
- 17 साल तक साथ रहे BJP और नीतीश
- नीतीश कुमार का बीजेपी से पहली बार 2014 मोहभंग हुआ
- 2014 के लोस चुनाव के लिए नरेंद्र मोदी पीएम पद के उम्मीदवार बने नीतीश ने नरेंद्र मोदी का विरोध करते हुए बीजेपी से नाता तोड़ा
- 2014 का लोकसभा चुनाव अकेले लड़ा
- 2014 के चुनाव में बेहतर नतीजे जेडीयू के पक्ष में नहीं आए
- जिसके बाद आरजेडी और कांग्रेस के साथ हाथ मिलाया
- 2020 में नीतीश ने फिर मारी पलटी
- 2015 विधानसभा चुनाव में जेडीयू, आरजेडी, कांग्रेस मिलकर लड़ा
- 2015 के चुनाव में बिहार में बीजेपी का सफाया कर दिया
- RJD और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई
- नीतीश सीएम बने और तेजस्वी यादव डिप्टी सीएम
- आरजेडी के साथ दो साल तक सरकार चलाई
- नीतीश ने 2017 में महागठबंधन से नाता तोड़ लिया
- 2017 मं बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाई
- नीतीश सीएम बने और बीजेपी नेता सुशील मोदी डिप्टी सीएम बने
- नीतीश कुमार और बीजेपी ने 2017 से लेकर 2022 तक सरकार चलाई
- 2020 विधानसभा चुनाव भी नीतीश ने बीजेपी के साथ लड़ा
- 2020 चुनाव में बीजेपी को फायदा और जेडीयू को नुकसान हुआ
- जेडीयू तीसरे नंबर की पार्टी बन गई थी
- BJP के खाते में 74 सीटें आईं,तो JDU 43 सीटें जीती
- इसके बाद भी बीजेपी ने मुख्यमंत्री की कुर्सी नीतीश कुमार को सौंपी
- बीजेपी ने अपने दो डिप्टी सीएम बनाए
- नीतीश कुमार ने 2022 में पलटी मारी
- 2022 आरजेडी व कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बना
- नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने और तेजस्वी यादव डिप्टी सीएम
- फिर से बदल गया है नीतीश कुमार का मन
- BJP के साथ मिलकर सरकार बनाने की कवायद
बिहार में नीतीश कुमार पिछले 20 साल से सियासत में धुरी बनाए हुए हैं। उन्हीं के इर्द गिर्द 20 सालों से राजनीति केंद्रित है। करीब 10 साल में वे 5वीं बार पलटी मारने की तैयारी कर रहे हैं। नीतीश कुमार ने साल 1974 के छात्र आंदोलन के जरिये राजनीति में कदम रखा था। 1985 में वे पहली बार विधायक चुने गए। विधायक बनने के बाद नीतीश कुमार ने पलटकर नहीं देखा। सियासत में आगे बढ़ते चले गए। साल 1990 में जब लालू प्रसाद यादव बिहार के सीएम बने। 1994 में नीतीश कुमार ने लालू के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। जबकि कभी नीतीश और लालू एक साथ जनता दल का हिस्सा थे। लेकिन राजनीतिक महत्वकांक्षा में दोनों के संबंध एक दूसरे से अलग हो गए।
बीजेपी के साथ 17 साल की पारी
1994 में नीतीश कुमार ने जनता दल को छोड़कर जार्ज फर्नांडीस के साथ समता पार्टी बनाई थी। इसके बाद वर्ष 1995 में वामदलों के साथ गठबंधन कर उन्होंने चुनाव लड़ा। हालांकि नतीजे उनके पक्ष में नहीं आए और नीतीश ने वामदलों के साथ गठबंधन तोड़ लिया। इसके बाद 1996 में पहली बार बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए का हिस्सा बन गए। नीतीश कुमार इसके बाद बिहार में बीजेपी के साथ मिलकर 1996 से 2013 तक चुनाव लड़ते रहे और बिहार में सरकार बनाते रहे।
जल्दी किसी दबाब में नहीं आते नीतीश
सीएम नीतीश के बारे में सियासी गलियों को एक और बड़ी चर्चा अक्सर सुनाई देती है। वो ये है कि नीतीश कभी भी दबाव की राजनीति कतई पसंद नहीं करते हैं। ऐसे ही कुछ दबाव के चलते उन्होंने पिछली बार लालू प्रसाद यादव के दबाव को बर्दाश्त नहीं किया और उनको दो मिनिट में बाय बाय कह दिया। यदि इस बार भी उन पर कहीं कोई दबाव आया तो उन्हे बड़ा निर्णय लेने में देर नहीं लगेगी। बताया जा रहा है कि इस बार भी राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव चाहते हैं कि उनका बेटा तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री बने। इसके लिए वे लगातार नीतीश पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि इसमें कितनी सच्चाई है कोई नहीं जानता। फिर भी यदि ऐसा है तो नीतीश इस तरह का दबाव बर्दाश्त नहीं करेंगे। यदि बड़ा फैसला नीतीश करते हैं तो इसके पीछे एक कारण यह भी हो सकता है।
बिहार में भाजपा ने फोकस करना शुरु कर दिया
लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा ने फोकस करना शुरु कर दिया है। जिसमें वाल्मीकिनगर, गोपालगंज, वैशाली, झंझारपुर, सुपौल, किशनगंज, पूर्णिया, मुंगेर, नवादा और गया सीट पर बीजेपी ने मंथन भी शुरु कर दिया है। नीतीश कुमार जानते है कि बीजेपी बहुत तेजी से बिहार को साधने में लगी हुई है। यहां बार बार केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का दौरा और कई भाजपा नेताओं का डेरा बिहार के जनमानस को बदलने की कोशिश में लगे हुए हैं। यदि भाजपा यहां कामयाब हो गई तो नीतीश के लिए मुश्किलें खड़ी हो जाएंगी। इसलिए सीएम नीतीश कुमार जानते हैं कि सत्ता से बाहर हुए तो उनकी मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
2019 के लोकसभा चुनाव में किसे मिली थी सीट
भाजपा ने 17 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। उसके सभी उम्मीदवार विजयी हुए थे। बीजेपी को कुल 96.1 लाख वोट मिले थे। वोट प्रतिशत 24 .06 प्रतिशत था। वहीं जेडीयू ने भी 17 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। जेडीयू के 16 उम्मीदवार विजयी हुए। उसे कुल 89 लाख वोट मिले थे। वोट प्रतिशत 22 . 26 प्रतिशत रहा था। लोक जनशक्ति पार्टी ने 6 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। पार्टी के ये सभी 6 उम्मीदवार विजयी हुए थे। एलजेपी को कुल 32 लाख वोट मिले थे। उसका वोट प्रतिशत 8 .02 प्रतिशत था। आरजेडी ने 19 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे लेकिन उसकी पार्टी के किसी भी उम्मीदवार को जीत नहीं मिली थी। वहीं कांग्रेस ने भी 9 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। कांग्रेस को एक सीट पर जीत मिली थी। रालोसपा ने अपनी ओर से 5 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। हालांकि उसे एक भी सीट पर जीत नहीं मिली थी।