मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव का शोरगुल तेज होता जा रहा है। विपक्ष महंगाई को मुद्दा बनाकर सरकार पर हमलावर है। वैसे महंगाई की मार प्रचार पर भी पड़ रही है। पांच साल में महंगाई बढ़ने की वजह से इस बार चुनावी खर्च बढ़कर 300 करोड़ से अब 500 करोड़ रुपए हो गया है। 2018 की तुलना में इस बार विधानसभा चुनाव कराने में खर्च में करीब 67 गुना वृद्धि हो गई है। बता दें 1 नवंबर 1956 को पहली मध्यप्रदेश विधानसभा अस्तित्व में आई थी। इसके बाद ये 16वां विधानसभा चुनाव है। चुनाव आयोग के अधिकारी बताते हैं इस बार चुनाव पर करीब 500 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है।
- चुनाव पर महंगाई का असर
- आयोग को खर्च कराना होंगे 500 करोड़ से अधिक
- पिछले 2018 के चुनाव में खर्च हुए थे 300 करोड़
- 2023 में 500 करोड़ से अधिक के खर्च होने का अनुमान
- चार बढ़े शहरों में सबसे अधिक राशि होती है खर्च
मध्यप्रदेश में चुनाव आयोग का सबसे ज्यादा बजट राजधानी भोपाल में खर्च होता है। इसके बाद ग्वालियर, इंदौर, जबलपुर में सबसे अधिक राशि खर्च होती है। दरअसल इसकी वजह इन जिलों में मतदाताओं की संख्या ज्यादा होना है। प्रदेश की 230 विधानसभा सीटों पर अब तक 73 करोड़ से अधिक का बजट जारी किया जा चुका है। वहीं जैसे-जैसे मांग आएगी वैसे-वैसे जिलों के जिला निर्वाचन अधिकारी यानी कलेक्टर्स को ये बजट जारी किया जाएगा। कहां कितनी राशि खर्च होगी इसकी मांग भी जिलों से ही आती है। मांग के अनुसार आयोग की ओर से बजट जारी किया जाता है। पोलिंग पार्टियों, सुरक्षा में लगे जवानों के भत्ते और टीए डीए पर सबसे अधिक राशि खर्च होती है। इस पर करीब 60 प्रतिशत राशि खर्च होती है। बता दें इस बार ये पहला अवसर है, जब करीब 12 करोड़ रुपए की राशि सिर्फ मतदाता पहचान पत्र मतदाताओं के घरों तक भेजने में खर्च हो रही है। इससे पहले ये राशि खर्च नहीं होती थी क्योंकि बीएलओ ही मतदाता पहचान पत्र पहुंचाते थे। लेकिन इस काम में देरी होती थी। जिसकी शिकायतें भी आयोग के पास पहुंचती रही है, जिसमें मतदाताओं की यही शिकायत रहती थी कि उन्हें मतदाता परिचय पत्र नहीं मिला।
पिछले चुनाव में खर्च हुए थे 300 करोड़
इस साल 2023 के विधानसभा चुनाव के लिए करीब 440 करोड़ का बजट रखा गया था। हालांकि मध्यप्रदेश के 64 हजार 523 मतदान केन्द्रों में से 50 फीसदी में वेब कास्टिंग की जाएगी। साथ ही सीसीटीवी कैमरे और गाड़ियों में जीपीएस भी लगेगा। मॉनिटरिंग की व्यवस्था होगी। मॉनिटरिंग की व्यवस्था पर सबसे अधिक करीब 60 करोड़ रुपए खर्च होंगे। यानी 440 करोड़ और 60 करोड़ मिला लें तो यह राशि करीब 500 करोड़ रुपए होती है। जिसके खर्च का अनुमान है। इस खर्च में वृद्धि की भी संभावना है। बता दें 2018 के विधानसभा चुनाव के लिए 416 करोड़ रुपए आयोग को चुनाव के लिए मिले थे। लेकिन चुनाव करीब 300 करोड़ में ही पूरा हो गया था।