एआईसीसी महासचिव प्रियंका गांधी मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव की तैयारियों को धार देने आ रही हैं। वे आदिवासी बहुल धार जिले के मोहनखेड़ा में कांग्रेस की बड़ी रैली करेंगी। यहां ये चुनाव प्रचार का आगाज करेंगी।
- 5 अक्टूबर को जन आक्रोश यात्रा का समापन
- धार जिले में रैली को संबोधित करेंगी प्रियंका गांधी
- जैन तीर्थ स्थल मोहनखेड़ा में कांग्रेस की रैली
- रैली में आदिवासी वोटरों को रिझाने का प्रयास करेंगी
- 12 जून को जबलपुर में की थी रैली
- 21 जुलाई को सिंधिया के गढ़ में गरजीं थीं प्रियंका गांधी
- अब मोहनखेड़ा से आदिवासियों को साधने का करेंगी प्रयास
कांग्रेस ने प्रदेश में चुनाव अभियान को धार देने के लिए केन्द्रीय नेताओं को बुलाया है। इसे और धार देने के लिए इसी माह 5 अक्टूबर को कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी मप्र आ रहीं हैं। वे धार जिले के मोहनखेड़ा आएंगी। जहां वे बड़ी रैली को संबोधित कर आदिवासी वोटरों को साधेंगी। बता दें प्रियंका गांधी का मध्य प्रदेश का ये तीसरा दौरा है। इससे पहले प्रियंका ने इसी साल 12 जून को जबलपुर में बड़ी रैली को संबोधित कर महाकौशल क्षेत्र में चुनावी शंखनाद किया था। इसके बाद प्रियंका गांधी ने 21 जुलाई को केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के गढ़ ग्वालियर में बड़ी जनसभा की थी। अब आदिवासी क्षेत्र से वे चुनावी आगाज करने आ रही हैं। प्रियंका गांधी जैन तीर्थ स्थल मोहनखेड़ा मेंपार्टी की रैली को संबोधित करेंगी। धार जिले में स्थित मोहनखेड़ा धार और झाबुआ जिले की सीमा पर है। ये दोनों जिले आदिवासी बहुल माने जाते हैं। ऐसे में प्रियंका गांधी यहां से चुनावी रैली कर आदिवासी वोटरों को रिझाने का प्रयास करेंगी।
चुनाव में खास हैं आदिवासी मतदाता
मध्य प्रदेश में आदिवासी मतदाताओं को साथ लिए बिना कोई भी दल सरकार नहीं बना सकता। क्योंकि मध्यप्रदेश की 230 सीटों में से 47 सीट ऐसी हैं जहां आदिवासी वर्ग के मतदाता सबसे अधिक हैं। यह सभी 47 सीटें इस वर्ग के लिए आरक्षित हैं। इतना ही नहीं करीब 84 सीट ऐसी हैं जहां पर आदिवासी समाज का सीधा प्रभाव दिखाई देता है। राज्य में 2018 के विधानसभा चुनाव में आदिवासी मतदाताओं के दूरी बनाने के चलते ही बीजेपी की सरकार सत्ता से दूर हो गई थी। तब 47 में से 30 सीटों पर कांग्रेस ने जीत हासिल की थी और 16 सीट भाजपा के खाते में आईं थी। जबकि एक सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी ने जीत दर्ज की थी। वहीं इससे पहले 2013 में भाजपा ने आदिवासी वर्ग की 31 सीटें जीती थी। आदिवासी वोटरों के चलते ही 2018 में कांग्रेस की सत्ता में वापसी हुई थी। एसे में कांग्रेस आदिवासी मतदाताओं के महत्व को अच्छी तरह से समझती है।
विधानसभा की 47 सीटों पर आदिवासी भारी
आंकड़ों के लिहाज से देखें तो साफ समझ आ जाएगा कि बीजेपी आदिवासी वोट बैंक पर इतना जोर क्यों दे रही है। दरअसल में मध्य प्रदेश में आदिवासियों की आबादी पर नजर डालें तो यह दो करोड़ से ज्यादा है। यह दो करोड़ से ज्यादा आदिवासी प्रदेश की कुल 230 विधानसभा सीटों में से 87 सीटों पर प्रभावी भूमिका में हैं। यानी इन सीटों पर आदिवासी वोट हार या जीत तय कर सकते हैं। इसमें भी खास बात यह है कि इन 87 विधानसभा सीटों में से 47 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं। यही वजह है कि बीजेपी का पूरा फोकस आदिवासी वोट बैंक पर है। प्रदेश में आदिवासियों की आबादी दो करोड़ के करीब है। इसी कारण बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही दल आदिवासी वोटर्स को साधकर रखना चाहते हैं। 2018 के चुनाव में कांग्रेस को 47 सीटों में से 30 पर जीत मिली थी।
आदिवासी इलाकों पर कांग्रेस का फोकस
कांग्रेस राज्य में अपना सबसे ज्यादा फोकस आदिवासी इलाकों पर रखने जा रही है। राहुल गांधी सितंबर और अक्टूबर में आदिवासी इलाकों का दौरा कर सकते हैं। उनकी सभाएं इस तरह आयोजित की जाएंगी कि ज्यादा से ज्यादा विधानसभा सीटों पर उनका असर हो सके। खास बात यह है कि कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियां आदिवासी इलाकों में बूथ मैनेजमेंट के लिए गुजरात और झारखंड से कार्यकर्ताओं और नेताओं को बुला रही हैं। इतना ही नहीं गुजरात में आदिवासी सीटों पर बीजेपी को एकतरफा सफलता मिली थी। इस बार पार्टी मालवा निमाड़ क्षेत्र की आदिवासी सीटों की जिम्मेदारी गुजरात के नेताओं को और विंध्य, बघेलखंड और महाकौशल क्षेत्र की आदिवासी सीटों की जिम्मेदारी झारखंड के आदिवासी नेताओं को देगी। कांग्रेस भी मध्य प्रदेश में आदिवासी नेताओं की नियुक्ति करने जा रही है।
जयस ने बढ़ाई कमलनाथ और कांग्रेस की चिंता
पूर्व सीएम कमलनाथ की सबसे बड़ी चिंता जयस और उसके गठबंधन को लेकर है। जय आदिवासी युवा शक्ति संगठन यानी जयस और आम आदमी पार्टी मध्य प्रदेश में कांग्रेस की टेंशन बढ़ाने जा रही है। गुजरात विधानसभा चुनाव में 5 सीटें और 13 फीसदी वोट हासिल करने वाली आम आदमी पार्टी अब मध्य प्रदेश में अपना फोकस बढ़ाने जा रही है। वहीं जयस मुस्लिम, ओबीसी और दलित पार्टियों के साथ मिलकर मोर्चा बनाने की तैयारी में है। यह मोर्चा कम से कम 85 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगा। इनमें से 47 आदिवासियों और 35 दलितों के लिए आरक्षित सीटें होंगी। इस बार अगर जयस निर्दलीय चुनाव लड़ती है तो इसका सीधा नुकसान कांग्रेस को उठाना पड़ेगा। खासकर आदिवासी सीटों पर जयस की मौजूदगी कांग्रेस के लिए नुकसानदेह साबित हो सकती है। अभी पिछले महीने जयस ने भोपाल में डॉ.हीरालाल अलावा की मौजूदगी में एक बड़ी बैठक की थी। जिसमें 10 छोटे समूहों ने हिस्सा लिया था। इस बैठक में दलित नेता और पूर्व सांसद डॉ.बुद्धसेन पटेल भी मौजूद थे। डॉ.हीरालाल अलावा दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्ग का एक मोर्चा बनाना चाहते हैं। जिसमें मुस्लिम संगठन भी शामिल होंगे। जयस की बैठक में सांसद ओवैसी की पार्टी भी मौजूद रही। ऐसा कोई भी मोर्चा कमलनाथ की रणनीति को जबरदस्त नुकसान पहुंचाएगा। देखना यह है कि कमलनाथ इस मोर्चे से कैसे निपटते हैं। कांग्रेसियों का भी मानना है कि 2023 का विधानसभा चुनाव पार्टी के लिए करो या मरो वाला साबित होने वाला है। खुद दिग्विजय सिंह कई बार कह चुके हैं कि अगर इस बार कांग्रेस एकजुट होकर सत्ता में नहीं आई तो यह राज्य हमेशा के लिए कांग्रेस के हाथ से निकल जाएगा।