मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव सिर पर हैं लेकिन कांग्रेस अपनी गुटबाजी से ही नहीं उबर पा रही है। कांग्रेस के तीन क्षत्रप दिग्विजय सिंह,कमलनाथ और ज्योरादित्य सिंधिया की एकजुटता ने ही 2018 में पार्टी को सत्ता दिलवायी थी। अब हालात बदले हुए हैं। इस बार सिंधिया साथ नहीं,विरोध मेंं खड़े हैं। जिसका नुकसान झेल रही कांग्रेस में अब दिग्विजय सिंह और कमलनाथ के बीच भी खींचतान बढ़ती जा रही है। प्रदेश में 15 महीने की कांग्रेस सरकार के दौरान पार्टी नेताअेों के बीच जो मतभेद उभर कर सामने आए थे वो बढ़ गए है।
कांग्रेस को लगा गुटबाजी का घुन
मप्र कांग्रेस में फिर उभरी गुटबाजी
सिंधिया के जाने के बाद भी नहीं लिया सबक
एकता से मिली थी सत्ता,गुटबाजी की चढ़ गई भेंट
नहीं मिली दिग्विजय और उनके परिवार को तवज्जो
बता दें पिछले कई मौकों पर ये सामने भी आ चुका है। चाहे वो बुरहानपुर का मामला हो जहां राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के कार्यक्रम के दौरान नकुलनाथ को तो बैठने के लिए जगह मिली थी, लेकिन दिग्विजय सिंह और जयवर्धन सिंह को स्थान नहीं मिला। इस तरह नारी सम्मान कार्यक्रम के दौरान छिंदवाड़ा में नकुलनाथ की पत्ती को आगे किया गया था, जयवर्धन सिंह की पत्नी का नाम नही लिया गया। अब कुर्सी का यह खेल ग्वालियर में भी नजर आया। जहां प्रियंका गांधी के कार्यक्रम में दिग्विजय सिंह को बहुत पीछे से आगे आना पड़ा। यह घटनाक्रम बताते हैं कि कांग्रेस में सबकुछ ठीकठाक नहीं चल रहा है।
सीएम के चेहरे को लेकर तकरार
दरअसल आपसी टूट-फूट के चलते साल 2020 में प्रदेश की सत्ता गंवाने वाली कांग्रेस के लिए 2023 में भी अंदरूनी गुटबाजी से निपटना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है। विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस में सीएम के चेहरे को लेकर तकरार बढ़ने से उसका चुनावी अभियान प्रभावित होने के आसार नजर आ रहे हैं। चुनाव से पहले सीएम पद को लेकर कमलनाथ और दिग्विजय गुट में खींचतान दिखाई देने लगी है। पिछले दिनों मप्र कांग्रेस में कमलनाथ समर्थक जहां उन्हें भावी मुख्यमंत्री मानकर पोस्टर बाजी करते नजर आए तो वहीं दिग्विजय खेमे के अरुण यादव ने तो यह तक कह दिया कि सीएम का चेहरा दिल्ली से तय होगा। आखिरकार बढ़ती तकरार के बाद पीसीसी चीफ कमलनाथ को यह कहना पड़ा था कि वे किसी पद की तलाश में नहीं हैं। उन्होंने जीवन में बहुत कुछ हासिल कर लिया है। 2018 में कांग्रेस 15 साल बाद सत्ता में वापस आई थी। उस दौरान पार्टी के सभी धड़ के नेता एकजुट दिखाई दिए थे। जिसके चलते सरकार बनी लेकिन सत्ता में आते ही कांग्रेस में गुटबाजी फिर सामने आ गई। 2020 में कांग्रेस की अंदरूनी गुटबाजी के साथ सिंधिया के दलबदल की वजह से कमलनाथ सत्ता से बेदखल हो गए। कमोबेश 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले भी अब कांग्रेस में अंदरूनी टकराव और गुटबाजी के हालात बनते नजर आ रहे हैं।
सरकार गिरने पर दिग्विजय की भूमिका पर उठे थे सवाल
2020 में जब कमलनाथ सरकार गिरी थी तब भी दिग्विजय सिंह की भूमिका को लेकर कई सवाल खड़े हुए थे। सरकार गिरने के बाद तब पूर्व मंत्री मुकेश नायक खुलकर मैदान में आ गए थे। उन्होंने तो यहां तक कहा था कि दिग्विजय सिंह ने अपने परिवार-रिश्तेदारों के लिए मध्य प्रदेश, गुजरात और उत्तर प्रदेश में भी राजनीतिक जमावट कर ली है। मध्य प्रदेश में दिग्विजय सिंह के बेटे जयवर्धन सिंह, भाई लक्षमण सिंह के साथ रिश्तेदार प्रियव्रत सिंह को विधायक बनवा दिया। गुजरात और उत्तर प्रदेश में भी अपने रिश्तेदारों को विधायक बनवा दिया है। नायक ने तब आरोप लगाया था कि कमलनाथ ने दिग्विजय सिंह को संकट मोचक समझा और उन्होंने ही धोखा दे दिया। कमलनाथ के इस्तीफे से ठीक पहले तक दिग्विजय सिंह शक्ति परीक्षण में जीतने की बात कहते रहे और फिर अचानक अल्पमत में होने की बात कहकर सरकार गिरवा दी थी।