मणिपुर का नंगा नाच दुनिया ने देखा है। लगभग तीन महिने से यहां हत्या,लूट, बलात्कार और आगजनी की घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से लेकर राहुल गांधी तक ने यहां का दौरा किया और हालात जानने की कोशिश की। इसके बाद भी परिणाम जस के तस हैं। मतलब सरकार से लेकर विपक्षी नेताओं तक के मणिपुर में शांति बहाली के प्रयास नाकाम रहे। बात जब लोकतंत्र के मंदिर में पहुंची तो यहां कोई किसी की सुनने को तैयार नहीं है। सरकार कहती है कि मणिपुर हिंसा पर चर्चा को तैयार हैं लेकिन विपक्ष नहीं चाहता की चर्चा हो। विपक्ष कहता है कि सरकार चर्चा से भाग रही है।
कौन नहीं चाहता चर्चा करना
शुक्रवार को दूसरे दिन भी संसद का मानसून सत्र सिर्फ इसलिए नहीं चल पाया कि वहां सदस्यों ने भारी शोरशराबा कर हंगामा किया। लोकसभा अध्यक्ष को अंतत: कार्यवाही स्थिगित करना पड़ी। शुक्रवार को लोकसभा की कार्यवाही 11 बजे शुरु होती इसके पहले विपक्ष ने हंगामा करना शुरु कर दिया। हंगामा इतना ज्यादा हुआ कि मात्र 4 मिनिट में ही सदन की कार्यवाही 12 बजे तक के लिए स्थिगित करना पड़ी। कुछ इसी तरह का हाल राज्यसभा का भी रहा। जहां लगभग 20 मिनिट तक हंगामा होता रहा जिसके चलते सभापति ने सदन की कार्यवाही दोपहर ढाई बजे तक के लिए स्थिगित कर दी।
सरकार ने कहा हम चर्चा को तैयार हैं
लोकसभा में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि हम मणिपुर हिंसा पर चर्चा करने को तैयार हैं लेकिन जब आप बात सुनेंगे तभी चर्चा सार्थक हो पाएगी। लेकिन भारी शोरशराबे के बीच विपक्ष ने रक्षामंत्री की एक भी बात नहीं सुनी। अंतत:स्पीकर को कार्यवाही स्थगित करना पड़ी। उधर मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस का कहना था कि स्थगन प्रस्ताव दिया है। जिस पर चर्चा होना चाहिए। कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी मनिकम टैगोर और राज्यसभा में आप के सांसद संजय सिंह और आरजेडी नेता मनोज कुमार झा सहित कई सांसदों ने नोटिस देकर मणिपुर हिंसा पर चर्चा की मांग रखी। इससे पहले गुरुवार को मानसून सत्र के पहले दिन संसद के दोनों सदनों में कार्यवाही शुरु होते ही विपक्षी सांसदों ने मणिपुर घटना पर हंगामा शुरू कर दिया था,जिसके चलते दोनों सदनों की कार्यवाही अगले दिन तक के लिए स्थगित कर दी गई थी।
सुनेंगे नहीं तो चर्चा कैसे होगी
एक सवाल यह भी है कि सरकार हो या विपक्ष दोनों ही एक दूसरे की बात सुनने को तैयार नहीं हैं। जब सुनेंगे नहीें तो चर्चा कैसे होेगी। दूसरी बात ये है कि यदि दोनों ही पक्ष मिलकर चर्चा करेंगे तो समाधान जरूर निकलेगा। मणिपुर को हिंसा मुक्त करना सरकार की जिम्मेदारी है तो विपक्ष भी अपनी जिम्मेदारी से मुंह नहीं मोड़ सकता है। यदि इसी तरह मणिपुर हिंसा जैसे गंभीर मुद्दों पर राजनीति होती रहेगी तो समाधान कब और कैसे निकलेगा ये एक तरह का यक्ष प्रश्न बना रहेगा।