भारतीय जनता पार्टी लोकसभा चुनाव के लिए सियासी गोटियां बैठाने में लगी है। हर एक राज्य से भाजपा को कहां कैसे फायदा होगा इस पर काम चल रहा है। यूपी और बिहार के नेताओं का एनडीए में शामिल होने के पीछे भाजपा की कुछ इसी तरह की रणनीति दिखाई दे रही है। हालांकि ये बात अलग है कि लोकसभा चुनाव में इससे भाजपा को कितना फायदा होगा ये आने वाले समय में पता चलेगा,लेकिन पार्टी चरणबध्द तरीके से जिस तरह से काम कर रही है उसे देखते हुए जानकार कहने लगे हैं कि इससे भाजपा अपने विरोधियों के लिए चुनौती जरूर खड़ी करेगी।
जातिगत गणना को लेकर भाजपा का दांव
बिहार में जातिगत गणना को लेकर खूब सियासी घमासान मचा था। बीते कुछ सालों में विपक्षी दलों ने खासतौर से जेडीयू,आरजेडी और सपा जैसे कई दलों ने जातिगत गणन को लेकर भाजपा की घेराबंदी की थी। यहां तक आरोप लगाए थे कि भाजपा दलित और पिछड़ों की विरोधी है। इसी मुद्दे पर अब भाजपा हमलावर होती दिखाई दे रही है। खासतौर से उत्तर भारत मं विपक्ष की चाल को फेल करने के लिए भाजपा ने नया दांव चला है। जिसके चलते यूपी में पिछड़े वर्ग से आने वाले ओम प्रकाश राजभर और बिहार में महा दलित समुदाय के जीतनराम मांझी को अपने पाले में कर लिया है। आने वाले समय में भारतीय जनता पार्टी जातीय समीकरण साधने के लिए ऐसे ही कई छोटे दलों को अपने साथ ला सकती है। यूपी में अनुप्रिया पटेल,संजय निषाद जैसे पिछड़े वर्ग के नेता भाजपा के साथ खड़े दिखाई दे रहे है। इसी तरह बिहार में जीतन राम मांझी,चिराग पासवान,उपेंद्र कुशवाहा जैसे कई नेता समर्थन में खड़े हैं।
पिछड़े और दलित वोटर्स का साधा
भारतीय जनता पार्टी ने उपरोक्त नेताओं को एनडीए में शामिल करके पिछड़े और दलित वोट बैंक को साधने का काम किया है। यह भी तय है कि यही वो वर्ग है जो राजनीति में सबसे ज्यादा मायने रखता है। जिसने इनको अपने पाले में कर लिया समझिए उसकी नैया पार लगना तय है। ये बात अलग है कि भाजपा ने नेताओं को अपने साथ खड़ा तो कर लिया है लेकिन इसका फायदा कितना होता है ये चुनाव में पता चलेगा।