देश के कई राज्यों में सियासी तूफान उठा है। जिसने भाजपा के विपक्षी दलों के लिए कई तरह की चुनौतियां खड़ी कर दी हैं।बिहार,झारखंड,कर्नाटक जैसे कई राज्यों में नेताओं के बयान और सियासी घटनाओं ने भाजपा के विरोधियों के लिए चुनौतियां खड़ी कर दी हैं। हालांकि ये विपक्षी दलों को तय करना है कि इन चुनौतियों से कैसे पार पाया जाए।
कर्नाटक में पार्टी टूटेगी
पटना और बेंगलुरू की बैठक के बीच कई ऐसी राजनीतिक घटनायें हुई जिससे विपक्षी दलों को खबरदार करने के लिए व्यापक विमर्श होगा। केवल गत दस दिनों में महाराष्ट्र की राकांपा में बंटवारा हो गए। शरद पवार की पार्टी टूट गई। इससे बिहार, झारखंड और कर्नाटक में विपक्षी दलों के बीच नई बहस छिड गई है। जडीएस के कुमार स्वामी ने एलान किया अब कर्नाटक में पार्टी टूटेगी। बिहार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव का नाम सीबीआई की दूसरी चार्जशीट में शामिल किया गया। पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी के बीच पंचायत चुनाव के बीच जमकर जुबानी जंग हुई।
अखिलेश की मुलाकात
राहुल गांधी ने खम्म में रैली कर तेलंगाना के सीएम चंद्रशेखर राव पर हमला करते हुए साफ कर दिया कि कांग्रेस, भारत राष्ट्र समिति के साथ कभी तालमेल नहीं करेगी। इस बीच उप्र के पूर्व मुख्यमंत्री और सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने हैदराबाद जाकर चंद्रशेखर राव से मुलाकात की। आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच खिंचाव बढा है। इसी बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को लागू करने की मंशा स्पष्ट रूप से प्रकट कर दी।
भाजपा की दोस्ती
जाहिर है विपक्षी खेमे जहां खेमेबंदी है वहीं भाजपा और साथी दलों के बीच जबरदस्त एका है। विपक्षी दलों को इस बात का इल्म है कि पिछले लोकसभा चुनाव में पटना में इकट्ठे हुए विपक्षी दलों को कुल मिलाकर 37.3 फीसदी वोट मिले थे जब कि भाजपा को अकेले 37.6 फीसदी वोट जनता ने दिये थे। अंकणित के हिसाब से भाजपा का पलडा भारी रहा है। उसे तोडने के लिए दस सालों की केंद्र सरकार की इंटर इनकमबैंसी जहां डबल इंजन की सरकार है वहां डबल इनकमबैंसी को वोटों में कैसे परिणत किया जाए, विपक्षी खेमा बंगलुरू में विस्तार से विमर्श करेगा।