हिंदु धर्म में कैलाश पर्वत को भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है. यह पर्वत हिंदु धर्म के सबसे पवित्र स्थानों में से एक है , जिस कारण इसकी यात्रा का बहुत अधिक महत्व होता है. हर साल हजारों की संख्या में इसके दर्शन करने के लिए कैलाश मानसरोवर की यात्रा करते हैं. हालांकि इस यात्रा को पूरा करने के लिए भक्तों को चीन से होकर गुजरना पड़ता है. चीन से होकर गुजरने के कारण भक्तों को कई कठिनाईयों का भी सामना करना पड़ता है. लेकिन आने वाले दिनों में ये परेशानियां खत्म होने वाली है. जी हां अब आप भारत से ही कैलाश पर्वत के दर्शन कर पाएंगे. इसके लिए अब आपको चीन जाने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी. लेकिन ऐसा हम क्यों बोल रहे हैं, चलिए आपको बताते हैं.
उत्तराखंड में मिला नया व्यू पॉईंट
उत्तराखंड के पिथौरगढ़ जिले की 18 हजार फीट ऊंचाई वाली लिपुलेख पहाड़ियों से कैलाश पर्वत साफ दिखाई देता है.यहां से पर्वत की दूरी मात्र 50 किलोमीटर. इस नए मार्ग को स्थानीय ग्रामीणों ने ढूंढकर निकाला है. ग्रामीणों से सूचना मिलने के बाद प्रशासन की टीम ने रोड मैप, लोगों के ठहरने की व्यवस्था, दर्शन के पॉइंट तक जाने का रूट सहित अन्य व्यवस्थाओं के लिए सर्वे किया. अफसरो और विशेषज्ञों की टीम अब इसकी रिपोर्ट पर्यटन मंत्रालय को सौंपेगी, जिसके बाद इस नए व्यू पॉइंट पर काम शुरू किया जाएगा. अधिकारियों का कहना है कि भक्त यहां से आसानी से कैलाश पर्वत के दर्शन कर पाएंगे.
तीन सालों से बंद है यात्रा
कैलाश पर्वत की यात्रा के लिए भारतीय यात्रियों को चीन पर निर्भर होना पड़ता है. कोरोना के बाद से चीन ने कैलाश पर्वत के दर्शन और मानसरोवर की यात्रा के लिए अनुमति नहीं दी है जिस कारण तीन सालों से यह यात्रा बंद पड़ी है. बता दें कि कोरोना के पहले साल 2019 में 31 हजार यात्री कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर पहुंचे थे.
तीन रास्तों से तय होती है यात्रा
आमतौर पर कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए 3 रास्ते है. पहला- लिपुलेख दर्रा (उत्तराखंड), दूसरा- नाथू दर्रा (सिक्किम) और तीसरा- काठमांडू. तीनों में से आप किसी भी रास्ते से जाओ कम से कम आपको 14 और अधिकतम 21 दिन लगना तय है.इसके अलावा उत्तराखंड के ग्रामीणों ने भी जो रास्ता खोजा है, उसके लिए भी आपको 2 किलोमीटर बड़ी पहाड़ी चढ़नी होगी, जो आसान नहीं होने वाला है.
पहले भारत का ही था हिस्सा
साल 1962 से पहले कैलाश और मानसरोवर पर भारत का कब्जा हुआ करता था, लेकिन 1962 में भारत इस इलाके को हार गया था, जिस कारण अब यात्रियों को यहां जाने के लिए चीन से पर्यटक वीजा लेना पड़ता है. इसके अलावा यहां पहुंचना भी बहुत मुश्किल है. सफर के दौरान ITBP के जवान और चीनी सैनिकों की पचासों तरह की चेकिंग होती है , जो सर को पचा देनी वाली होती है.