केंद्र सरकार बारिश के पानी की निकासी के लिए शहरों पर बीते 10 वर्षों में 25 हजार करोड़ रुपए खर्च कर चुकी है। इसके बावजूद हर बारिश के दौरान शहरों में बाढ़ जैसे हालात पैदा हो जाते हैं और पानी उतरने में घंटों लगते हैं। इससे शहरी इंफ्रास्ट्रक्चर को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंच रहा है।
*मंत्री मनोहरलाल खट्टर का सुझाव…
संसद के हाल में खत्म हुए बजट सत्र में जब शहरों में बाढ़ जैसी स्थिति को लेकर सवाल उठा तो शहरी मामलों के मंत्री मनोहरलाल खट्टर ने कहा कि देशभर के सभी ड्रेनेज सिस्टम एक घंटे में 2 सेमी या करीब आधा इंच बारिश के हिसाब से बने हैं, लेकिन मौसम में बदलाव के चलते अब शहरी क्षेत्रों में एक घंटे के दौरान 8 से 10 सेमी (2-3 इंच) तक बारिश हो जाती है। उन्होंने कहा कि एक साथ इतनी बारिश होने से पानी जमा हो जाता है क्योंकि ड्रेनेज सिस्टम इतनी बारिश को झेलने वाली क्षमता के नहीं हैं।
इसी वजह से मानसून के दौरान दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद, चेन्नई, बेंगलुरु सहित तमाम छोटे-बड़े शहरों में घंटे-भर की बारिश में ही बाढ़ जैसे हालात बन रहे हैं। अब हमें मौसम में बदलाव के हिसाब से ड्रेनेज सिस्टम विकसित करने होंगे, इसके लिए संसद में सदस्यों से सुझाव लेकर नई योजना तैयार करेंगे।
*शहरों में बायो ड्रेनेज सिस्टम और स्पंज सिटी कॉन्सेप्ट लागू हों
स्मार्ट सिटी में जिस तरह इंटीग्रेटेड कंट्रोल एंड कमांड सेंटर बने हैं, उसमें शहरों की स्टॉर्म वाटर ड्रेनेज की निगरानी को शामिल करना चाहिए। देश के बाकी शहरों में भी पारंपरिक ड्रेनेज सिस्टम से काम नहीं चलेगा। अब भविष्य को ध्यान में रखते हुए बायो ड्रेनेज सिस्टम होना चाहिए क्योंकि क्लाइमेट चेंज हो रहा है, कम समय में बहुत ज्यादा बारिश हो जाती है। इसके अलावा एक स्पंज सिटी कॉन्सेप्ट है, जिसमें सड़कों के बीच ऐसा स्थान रखा जाता है जिससे बारिश का पानी सीधे जमीन में सोख लिया जाए। एक अन्य स्वैल कॉन्सेप्ट है, जिसमें शहरों के निचले इलाकों में तालाब विकसित किए जाते हैं ताकि वहां पानी बना रहे।
*निर्माण बढ़ने से पानी को धरती में रिसने का रास्ता नहीं मिल रहा
स्टॉर्म वाटर ड्रेनेज के नए ढांचे और उनकी देखभाल ठीक से नहीं हो रही है। शहरों में बिल्टअप एरिया तेजी से बढ़ रहा है। जो शहर नदी किनारे हैं, वहां विकास के नाम पर बाढ़ क्षेत्र में भी कांक्रीटीकरण हो रहा है। पानी को धरती में रिसने का रास्ता नहीं मिल रहा।