बीजेपी ने गुजरात में होने वाले विधानसभा चुनाव के एक साल पहले ही अपना मुख्यमंत्री बदल दिया. इस दौरान विजय रूपाणी से इस्तीफा लेकर उनकी जगह भूपेन्द्र पटेल को दी गई. गुजरात में हुए इस फेरबदल और अपने पिता को पद से हटाए जाने को लेकर उनकी बेटी राधिका का दर्द सामने आया है और एक पोस्ट लिखकर कई संकेत दिए. जिसके बाद से कयास लगने लगे है की वियय रूपाणी पार्टी से बगावत कर सकते है?
गुजरात की सत्ताधारी पार्टी में बीते कुछ दिनों से सियासी चहल कदमी देखने को मिल रही है. इसी बीच पार्टी नेतृत्व को बदल दिया गया. विजय रूपाणी की जगह पहली बार विधायक बने भूपेन्द्र पटेल को दे दी गई. रूपाणी अपना कार्यकाल भी पूरा नहीं कर सके. राज्य में हुए इस बदलाव की कई वजह सामने आ रही है कहा जा रहा है की आरएसएस की तरफ से जो सर्वे किया गया था, उसमें रूपाणी की अलोकप्रियता की वजह से बीजेपी वोट प्रतिशत कम हो रहा था, इसलिए नेतृत्व परिवर्तन किया गया. राज्य में हुए इस बदलाव और अपने पिता के इस्तीफे के बाद बेटी राधिका ने एक फेसबुक पोस्ट के जरिए अपना दर्द बयां किया है, जिससे कई संकेत मिल रहे है.
बेटी का छलका दर्द
राधिक ने लिखा है कि बहुत कम लोग जानते है कि कोरोना और ताउते तूफान जैसी बड़ी दिक्कतों में मेरेे पिता सुबह ढ़ाई बजे तक जागा करते थे और लोगों के लिए व्यवस्था कराते थे. कई लोगों के लिए मेरे पिता का कार्यकाल एक कार्यकर्ता के रूप में शुरू हुआ और कई राजनीतिक पदों के जरिए मुख्यमंत्री तक पहुंचा. लेकिन मेरे पिता का कार्यकाल मेरे नजरिए से 1979 मूरली बाढ़ा, कच्छ भूकंप, स्वामी नारायण मंदिर आतंकी हमले, गोदरा की घटना से शुरू हुआ. ताउते तूफान और कोविड के दौरान भी मेरे पिता पूरी जान लगाकर काम कर रहे थे. राधिक ने इस पोस्ट में अपने बचपन का भी जिक्र किया और लिखा है कि पापा ने कभी अपना निजी काम नहीं देखा, उन्हें जो जिम्मेदारी मिली उसे पहले निभाया. स्वामी नारायाण अक्षरधाम मंदिर में आतंकी हमले के वक्त मेरे पिता वहां पहुंचने वाले पहले शख्स थे, वो नरेन्द्र मोदी से भी पहले मंदिर परिसर में पहुंचे थे.
राधिका ने खड़े किए कई सवाल
आगे लिखते हुए राधिका ने उन लोगों पर जमरक निशाना साधा है, जो रूपाणी के इस्तीफे का कारण होना बता रहे है. राधिका ने सवाल करते हुए लिखा है कि क्या राजनेताओं में संवेदनशीलता नहीं होना चाहिए, क्या यह एक आवश्यक गुण नहीं है जो हमे एक नेता में चाहिए. मेरे पिता रूपाणी ने कड़े कदम उठाए है, क्या कठोर चेहरे का भाव एक नेता की निशानी है. आगे कहते हुए राधिका ने लिखा है कि मेरे पिता ने कभी गुटबाजी का समर्थन नहीं किया और यही उनकी विशेषता थी. कुछ राजनीतिक विशलेषक सोच रहे होंगे की ये विजय भाई के कार्यकाल का अंत है, लेकिन हमारी राय में उपद्रव या प्रतिरोध बजाए, आरएसएस और बीजेपी के सिद्धांतों के मुताबिक सत्ता को लालच के बिना छोड़ देना बेहतर है. राधिका ने इस पोस्ट के जरिए अपना दर्द तो बयां किया ही साथ ही ये संकेत भी दे दिए है कि रूपाणी इस बदलाव से खुश नहीं है और पार्टी के लिए अपनी जिंदगी दांव पर लगाकर भी उन्हें कुछ भी हांसिल नहीं हुआ. जिसके बाद अब बगावत की तरफ भी कदम रूपाणी उठा सकते है?.